हास्य व्यंग्य | |
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तेनालीराम से
साक्षात्कार |
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आज सड़क पर हम चलते जा रहे थे।
अचानक हमारी नज़र सडक के किनारे अनमने और उदास से बैठे एक शिखाधारी, दीन-हीन से
दिखने वाले प्राणी पर जा टिकी। जाने क्यों हमें लगा कि हो ना हो ये कोई जाना-पहचाना
बुद्धिजीव है। पास जाकर ऐसा लगा कि, इससे तो ऐसा लगता है बचपन में कई बार मिल चुके
हैं, परंतु स्मृति की गठरी लाख खंगालने के बाद भी समझ नही आया कि वो भलामानुष आखिर
है कौन। बच्चों की
मम्मियों को किट्टी पार्टी से फुर्सत नहीं, वैसे भी फेसबुक पर स्टेटस अपडेट में
'ओल्ड- फैशंड' तेनालीराम के बारे में अपडेट करेंगी तो 'आउट-डेटेड' और
'ओह-सो-बोरिंग' की प्रतिक्रया आयेगी और पापा बेचारे तो रोज़ी -रोटी और नये ब्राण्ड
की गाडी के चक्कर में ही पिसे जाते हैं, दादा-दादी के साथ रहने का फैशन तो कब का
आउट-डेटिड हो गया तो हमारे जैसों के किस्से बेचारे बच्चे कहाँ से जाने।“ बिजली से लेकर सिलिंडर तक हर आम ज़रुरत की चीज़ को ये फुटबाल की तरह लुढका कर राजनीति करतें हैं। आम आदमी जहाँ राशन की जुगत में जुड़ा है, ये लोग टूजी जैसे लाखों करोड़ के घोटाले किये जा रहे हैं। जहाँ आम- जनमानस सिलिंडर छोड़ चूल्हा फूँकने की तैयारी कर रहा है, ये लोग लाल-बत्ती की गाड़ियाँ व्यर्थ घुमाते, विदेश यात्रा करते, मंत्री भत्ते बढाने की बात करते हैं।सही मायने में एनीमेशन के लिए फिट हैं ये लोग, क्योंकि एनिमेटेड चीज़ों में भावनाएं जो नहीं होती, तभी जनता का दुःख दिखाई नहीं पड़ता, तभी विकलांगों की बैसाखियाँ तक छीनने में नहीं अचकचाते। जैसे कंप्यूटर-प्रोग्राम के कोड से एनीमेशन चलता है वैसे ही नोटों की हरियाली से इन नेताओं का भ्रष्ट शासन चलता है। चुनाव जीतने के बाद नेता ये नहीं सोचता मुझे क्षेत्र में क्या-क्या काम प्रगति के करने है, बल्कि ये सोचता है कि किस विभाग या किस मंत्रिमंडल में ज्यादा मलाई खाने को मिलेगी अर्थात घोटाले करने की संभावना क्या है। जनता की गाढ़ी कमाई को जिस भी विभाग से अपने लिए नोट छापने की मशीन में फटाफट डाल सकते हैं उसी विभाग की ओर देखकर ये नेता मुँह में जीभ फिराये जाते हैं, और एक बार मंत्रिमंडल में आने के साथ ही चुनाव में जनता से किये हुए वादे पान की पीक के साथ लोकतंत्र के मुँह पर थूकते हैं। अब ऐसे लोगों के चरित्र को ध्यान में रखकर कोई
कार्टून बनेगा तो लोग उसमें रुचि लेंगे, चैनल की टी आरपी बढ़ेगी। कुछ लोग उसको केवल
समय बिताने के लिए देखेंगे, कुछ जी-मसोसने के लिए, कुछ फेसबुक पर स्टेटस अपडेट करने
के लिए देखेंगे, कुछ ट्विटर पर ट्वीट करने के लिए, कुछ होंगे जो भ्रष्टाचार मुक्त
भारत का सपना देखेंगे और कुछ ही होंगे जो जन आन्दोलन शुरू कर देश को जागरूक करने की
सोचेंगे। ऐसे में मुझ जैसे बीत चुके ज्ञान-मनोरंजन के पात्र में आम दिलचस्पी जगाना
चैनल के लिए टेढ़ी-खीर साबित होता। इसलिए हमें तो ऑडिशन से पहले ही दरवाज़ा दिखा
दिया गया। हमारे मित्र बीरबल जी को तो अपनी वाक्-पटुता के कारण एक एनिमेटेड टॉक-शो
में काम मिल गया हमें ही अपना सा मुँह लेकर वापसी की गाडी पकडनी पडेगी।" |
१७ दिसंबर २०१२ |