1 इधर व्यंग्य
में विषयों का अकाल है। समाचारों का अकाल है। घिसे पिटे लेखक
घिसेपिटे विषयों पर घिसेपिटे व्यंग्य लिखकर घिसेपिटे स्थानों
पर प्रकाशित कराकर घिसेपिटे चेक प्राप्त कर रहे हैं। कुछ लोग
घोस्ट राइटिंग के घोस्ट के पीछे पड़े हुए है। हर व्यक्ति अपने
आपको सफल समझता है और अन्य व्यक्ति उसे असफल, गलत, बेकार,
नाकारा, निकम्मा घोषित करते रहते हैं। विफलताओं का यह किस्सा और भी आगे चला। मैंने कई प्यार किये और हर एक में असफल रहा। जिससे प्यार किया उससे शादी नही करने की परम्परा का मैंने भी निर्वाह किया। मैंने विदेश जाकर काम करने के प्रयास किये, असफल रहा। मैंने सुदर्शन दिखने के प्रयास हेतु वर्जिश की, असफल रहा और काफी समय खाट पर पड़ा रहा। मेरी असफलताओं में बैचेनी, उच्च रक्तचाप, पेट की परेशानियों का बड़ा हाथ रहा। जब भी सफलता आने का समय होता कोई दूसरा बाजी मार लेता और मैं ठगा सा देखता रह जाता। पुरस्कारों के लिए प्रयास किया, असफल रहा। मैंने कलेण्डर को देखकर मौसमी लेखन शुरू करने का प्रयास किया, असफल रहा। आकाशवाणी, दूरदर्शन पर वार्ताएँ पढ़ने की कोशिश की, असफल रहा। मैं वकील, डॉक्टर, इन्जीनियर, नेता, अफसर भी नहीं बन सका। कुछ प्राकृतिक कारणों से मैं देवदासी भी नहीं बन सका। असफलताओं का और मेरा चोली-दामन का साथ है। पूरा जीवन विफलताओं से भरा है और अँधेरे में रोशनी का दिया टिमटिमा रहा है तो बस व्यंग्य का है। आप क्या सोचते है, जीवन में कौन
सफल होता है। सफलता किसके चरण चूमती है? और क्यों? सफल हाने के लिए स्वाभिमान को
क्यों बेचना पड़ता है। मैं गुरू था लोग गुरू घंटाल निकले। गुरू गुड़ और चेले शक्कर
हो गये। यारों स्वाभिमान को घर पर छोड़ो और सफल हो जाओ या फिर मेरी तरह असफलताओं के
गीत गाओ, और अन्त में शायर का कहना है। |
९ मई २०११ |