पिछले दिनों दो बड़े प्रेरक और
गदगद कर देने वाले बयान आए। आप देश के बड़े बड़े नामी लोगों को तो जानते ही हैं।
अरे वही जिनके लिये कहा गया है कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा तो, उन्हीं ने
बयान दिया, कहा कि हाल ही में जो रियल एस्टेट में घोटाला हुआ वह बड़ी छोटी चीज है,
कोई बड़ा घोटाला नहीं है। मुझे सुनकर पहले बड़ी शर्म आई अपने अल्पज्ञान पर। धिक्कार
है, मैने सोचा। कितना पिछड़ापन है, कहाँ खड़ा हूँ मैं? मैं तो सोच रहा था कि यह बहुत
भारी घोटाला है। करीब एक लाख करोड़ यदि ईमानदारी से नहीं बेईमानी से भी गरीबों पर
खर्च किए जाएँ तो उनकी हालत बदल सकती है। लेकिन घोटालों ने मेरा दिमाग हिला दिया
है।
अब लग रहा है कि क्या औकात है एक लाख करोड़ की, कुछ भी तो नहीं। मुझे लगा कि बदनाम
हो कर नामी हुए ये सज्जन देश के कथित महाघोटालेबाजों को ललकार रहे हैं कि चुल्लू भर
पानी में डूब मरो! अरे अपनी हैसियत पहचानो । कई छोटे -मोटे घोटालेबाज, घूसखोर जो
अपने आप को बड़ा तीस मार खाँ समझते थे, अहलूवालिया के बयान के बाद मुंह छुपाए घूम
रहे हैं और कई लोग जो कई दिनों से अपनी पिछड़ी सोच के कारण छोटा-मोटा भ्रष्टाचार
करने की जुगत बनाकर भी कर नहीं पा रहे थे, उन्हें प्रेरणा मिली है कि यदि कुछ करना
है तो बड़ा करो। यहाँ मुझे एक पुस्तक का नाम याद आ रहा है-बड़ी सोच का बड़ा जादू। जब
बड़ा सोचेंगे तभी बड़ा करेंगे। आदर्श सोसायटी वालों ने अब एक नया मुहावरा दिया है कि
जो कोई न सोच सके वह करो। इसी तर्ज पर एक ऐसी पुस्तक की जरूरत तत्काल है जिसका
शीर्षक कुछ इस तरह हो- बड़े घपले का बड़ा जादू। इसके लेखक यदि कोई बड़ा घोटालेबाज तो
यह बेस्ट सेलर बुक हो सकती है। वे न भी हों तो किसी मैनेजमेंट गुरु को इस तरफ ध्यान
देना चाहिए, ऐसा मेरा प्रस्ताव है।
मोंटेक सिंह का बयान ऐसा ही है जो बंजर जमीनों में यानि जिनमें घोटाले करने की
क्षमता नहीं है,उन्हें भी उकसा सकता है, उकसा रहा है। सही मायने में मोंटेक सिंह ने
देश के घपलेबाजों और घपलेबाज बनने की महत्वाकांक्षा पाले बैठे लोगों को एक चुनौती
दी है। गुजरे जमाने में डाकू गाँव वालों को चुनौती देते थे कि हम तुम्हें लूटने
आएँगे, बचा सको तो बचा लो खुद को। अब डाकू चले गए, उनकी दबंगई चली गई, अब उनकी जगह
नेता आ गए, और उनकी अपनी दबंगई भी। सही मायनों में हुजूरे आला के बयान में भी ऐसी
ही दबंगई है कि यदि हिम्मत है तो बड़े घोटाले कर के दिखाओ। आज नेताओं की इसी तरह की
दबंगई से कोई नहीं जीत सकता । जनता कहेगी कि इतनी बड़ी दुर्घटना हो गई, इतने सारे
लोग मर गए और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है, नैतिकता के आधार पर आपको इस्तीफा दे
देना चाहिए, वे तत्काल कहेंगे कि यह गलत है कि यह बहुत बड़ी दुर्घटना है। इससे पहले
भी बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएँ हुई हैं, उनमें इस दुर्घटना से ज्यादा लोग मारे गए थे। उस
समय जो मंत्री थे उनने भी इस्तीफा नहीं दिया था, उनने राजनीति की नैतिकता का पालन
किया था, हम भी उन्हीं की नैतिकता का पालन कर रहे हैं। हम भी इस्तीफा नहीं देंगे।
जनता कह रही है कि इतने बड़े-बड़े घोटाले डंके की चोट पर किए जा रहे हैं, सरकार कुछ
करती नहीं ? मंत्री कह रहा है कहाँ हुआ घोटाला? अरे ये भी कोई घोटाला है? वह आँकड़े
बता रहा है कि कब कितना बड़ा घोटाला कहाँ हुआ था। देश में उसे बड़े आँकड़े नहीं मिल
रहे तो वह दुनिया भर के आँकड़े बता रहा है। घोटालों पर अदभुत है उसका ज्ञान। इन्हीं
के सहारे तो वह सारे खेल करता है। वह मानने को राजी नहीं है कि जो कुछ अभी तक हो
रहा है, हुआ है वह बहुत गलत है। वह कह रहा है कि यह राजनीति है, हमें और सरकार को
बदनाम की साजिश है यह। यह साजिश कौन कर रहा है। वह कहता है विपक्ष। लेकिन घोटाले
हुए हैं तभी तो विपक्ष कह रहा है। इसमें राजनीति कहाँ? वह नहीं मानता। मान लेगा तो
नेता नहीं रह जाएगा। हमारे जैसा हो जाएगा जो हर बात को मानने के लिए ही तैयार बैठा
रहता है।
बहरहाल हम खुश हैं इस तरह के बयानों से। इनसे प्रेरणा लेकर बढ़चढ़ कर घोटालों के
समाचार रोज आ रहे हैं। इससे देश के युवाओं के सामने नई राहें खुल गई हैं। चाहे
पत्रकार हों, टीवी वाले हों या धन्नासेठ सब घोटालों की गंगा में कूद पड़े हैं। अब
बस पार होने की देर है। उन्हें चाहिए कि वे घोटालों की कसौटी पर खरे उतरें और जहाँ
हैं, जैसे हैं वहीं से ऐसे-ऐसे घोटाले करें कि पुराने कीर्तिमान टूट जाएँ लोग कहें
कि हाँ यह हुआ बड़ा घोटाला। लेकिन यह भी एक मजबूरी है कि इसके लिए भी बड़ी भारी
योग्यता चाहिए। सरकारी आदमी ही ऐसे पराक्रम कर सकते है या फिर विदेशों से अनुदान
प्राप्त करने वाले अंतर्राष्ट्रीय सहायता प्राप्त लोग या फिर माफिया के सेवक। इस
प्रकार की सहायता न मिल पाए तो इससे हजार गुना ज्यादा पराक्रम करने की सामर्थ्य
होने के बावजूद बेरोजगारों को घोटालों की दुनिया में अवसर नहीं मिलते।
राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकारी पक्ष का कहना है कि जेपीसी
की माँग कर विपक्ष राजनीति कर रहा है। मै भी इससे पूरी तरह सहमत हूँ। घोटालों का
खेल कोई ऐसी चीज नहीं हैं जो जबान चला देने बस से हो जाए इसके लिए बड़े खेल करने
पडते हैं, सब को साधना पड़ता है, और सबसे बड़ी बात यह कि इसे खेलने के लिए साहस नहीं
दुस्साहस चाहिए, जो हर किसी के बस की बात नहीं है। सरकारी पक्ष के इस बयान से यह
स्पष्ट नहीं है कि वह राजनीति को किस रूप में ले रहा है। राजनीति अपने आप में बहुत
बड़ी भूल भुलैया है। बहुत बड़ा रहस्य है। यह अपने आप में कर्म भी है और फल भी।
यदि आज सरकारी बंदे ने ७५ हजार करोड़ का घोटाला सिर्फ एक ही खेल में कर दिखाया है तो
यह राजनीति की वजह से ही तो संभव हो पाया। यदि वे राजनीति में न होता तो मंत्री भी
नहीं होता या शायद कुछ भी न होता, या होता तो चाहे जो होता पर इतना बड़ा घोटाला करने
लायक तो नहीं ही होता कि पूरा देश रह-रह कर हाय हाय करता रहता।
जब राजनीति इतनी ताकतवर, इतनी रक्षक है तो विपक्ष राजनीति कर रहा है, इसका क्या
मतलब? क्या सरकारी पक्ष यह कहना चाहता है कि विपक्ष भी कोई बड़ा घोटाला कर रहा है?
वैसे यदि वह यह भी कह रहा है तो उसकी बात में दम है। क्योंकि किसी के बने-बनाए खेल
को बिगाड़ना भी तो अपने आप में बड़ा घोटाला ही है, फिलहाल यह घोटाला विपक्ष कर ही रहा
है। |