हास्य व्यंग्य

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फटाफट क्रिकेट और चीयर बालाएँ
अनूप शुक्ला
 


कभी क्रिकेट सभ्य लोगों का खेल माना जाता था। खिलाड़ी सफ़ेद पोशाक में सभ्य लोगों की तरह खेलते थे। आज खिलाड़ी सफ़ेद पोशाक तो नहीं ही पहनते हैं। वे ऐसी कोई हरकत भी नहीं करते जिसके उन पर सभ्य होने का इल्जाम लगाया जा सके। अक्सर गेंदबाज आउट करके बल्लेबाज को ऐसे देखता है जैसे अगर वह क्रीज से न गया तो उसका खून पी जायेगा। बल्लेबाज ज्यादा रन बनाकर बल्ला कुदाल की तरह ऐसे घुमाता है कि देखकर लगता है अगर गेंदबाज दूर न खड़ा हो तो उसका सर फ़ट ही जाये।

पहले क्रिकेट में पूरे मैच में दो-चार छक्के लगते थे। दिन भर में कुल जमा दो-तीन सौ रन बनते थे। आज फ़टाफ़ट क्रिकेट का जमाना है। मैच में लगने वाले चौवों-छक्कों की संख्या देश में घपलों-घोटालों की तरह बढ़ गयी है। जैसे देश में किसी भी योजना में कोई भी घपला हो सकता है वैसे ही बल्लेबाज किसी भी गेंद पर छक्का मार देता है। जिस पिच से दिन भर में पसीना बहाकर खिलाड़ी तीन सौ रन पैदा कर पाते थे उसी पिच से दोनों टीमें मिलकर आधे दिन में चार-साढ़े चार रन बटोर लेती हैं।

पहले खिलाड़ी पिच पर आकर उसका व्यवहार देखते थे। मिजाज भाँपते थे। टिकते थे। पिच को बल्ले से आहिस्ते से ठोंकते थे। इसके बाद दाएँ देखते थे। बाएँ निहारते थे। क्रीज पर खड़े होकर गेंद का इंतजार करते थे। कभी-कभी गेंदबाज के दौड़ना शुरु करने के बाद क्रीज से हट जाते थे। गेंदबाज हिन्दमहासागर से अमेरिका सातवें बेड़े की तरह वापस लौट जाता था। बल्लेबाज साइड स्क्रीन इधर-उधर हटवाते थे। गेंदबाज फिर से गेंद पर थूक लगाकर पैंट पर रगड़ता था। गेंद फ़ेंकता था ऊऊऊंह करते हुये। बल्लेबाज गेंद खेलकर विकेट के आसपास टहलते थे। फिर अगली खेलते थे। उसके बाद फिर अगली। अक्सर बल्लेबाज गेंद को आदर के साथ वापस खेल देता था, या फिर ऐसी जगह भेज देता था ताकि वह खोये नहीं, गेंदबाज के पास सुरक्षित वापस पहुँच जाये। इसके बाद बल्लेबाज का किसी गेंद पर दिल आ गया तो रन बना लेता था। और ज्यादा मन किया तो एकाध चौका मारकर संतोष कर लेता था। कभी-कभी बहुत मूड खराब हुआ तो दिन भर में एकाध छक्का भी मार देता था। इस बीच वे दूसरी टीम के खिलाड़ियों से हँसी-मजाक भी कर लेते थे।

लेकिन आज मामला उलट गया है। खिलाड़ी पिडारियों की तरह पहली ही गेंद से रन लूटने लगते हैं। न हेल्लो, न हाय। न हाउ डु यू डू न केमछो। न भालो! बस पहली गेंद से ही मार-पीट शुरु। कभी-कभी किसी बल्लेबाजों को देखकर तो लगता है कि कोई अफ़सर मलाईदार पोस्ट की कीमत चुकाकर आया है। जित्ती जल्दी हो सके माल काट लेना चाहता है। पोस्टिग के लिये खर्चा किये पैसे तबादला होने के पहले निकाल लेना चाहता है। गेंदबाज बेचारा आम जनता की तरह पिटता रहता है। एकाध विकेट ले भी लेता है तो अगला आकर उसे फिर से पीटने लगता है। जैसे अपने साथी को आउट करने का बदला चुका रहा हो।

इस सबके के चक्कर में सबसे ज्यादा मरन बेचारी चियरलीडरानियों की होती है। हर छक्के-चौके पर उनको ठुमका लगाना पड़ता है। सौंन्दर्य की इत्ती खुलेआम बेइज्जती और कहीं नहीं होती जितनी चीयरबालाओं की होती है। एकाध रन पर भले वे धीरे-धीरे हिलें लेकिन चौका-छक्का लगने पर उनको बहुत तेज हिलना पड़ता है। जैसे उनको बिजली नंगा का तार छू गया हो। वे बेचारी कोसती होंगी चौका-छक्का लगाने वाले खिलाड़ियों को- खुद तो रन लेने के लिये हिलता नहीं। छक्का मारकर हमारा कचूमर निकलवा रहा है। अरे इत्ता ही शौक है रन बनाने का तो दौड़कर रन लो। पसीना बहाओ। लेकिन नहीं। खुद तो हिलेगा नहीं। गेंद उछाल कर मैदान के बाहर कर दी। हमको हिलाकर धर दिया। हिटर कहीं का। चौकाखोर कहीं का। छक्केबाज नहीं तो।

सहवाग, युसुफ़ पठान, गिलक्रिस्ट, सचिन, जडेजा आदि खिलाड़ियों को भले ही चियरबालाएँ कुछ कहें भले न पेट के खातिर लेकिन मन ही मन इनको कोसती जरूर होंगी। अगर चियरबालाओं को उनका आदर्श खिलाड़ी चुनने के लिये पूछा जाये तो वे -क्रिकेट खिलाड़ी कैसा हो, सुनील गावस्कर जैसा हो जैसा कुछ कहेंगी। सुनील गावस्कर ने पहले विश्वकप में ओपनिंग की और साठ ओवर में नाटआउट रहते हुये कुल छत्तीस रन बनाये थे।
चियरबालाएँ बहुत खूबसूरत होती हैं, नृत्य में पारंगत होती हैं, बहुत कम कपड़े पहनती हैं। इस सबके बावजूद खिलाड़ी उनकी तरफ़ आँख उठाकर नहीं देखते। बल्लेबाज और गेंदबाज दोनों की निगाह गेंद पर ही रहती है। पुराने समय में अप्सराएँ तपस्यारत ऋषियों-मुनियों को डिगाकर उनकी तपस्या की गिल्लियाँ उड़ा देती थीं । लेकिन आजकल वे बेचारी दिन भर ठुमकती रहती हैं। खिलाड़ी पर उनका कोई जादू नहीं चलता। वह उनको लगातार ठुमके लगाने के लिये बाध्य करता रहता है।

कभी कभी लगता है कि चीयरबालाएँ जब घर से अपने काम के लिये निकलती होंती तो शायद अपने-अपने इष्ट देवताओं से प्रार्थना करती होंगी-

१.हे भगवान, आज का मैच लो स्कोरिंग करा दो। कमरदर्द के मारे बुरा हाल है। आपसे तो कुछ छिपा नहीं भगवान। आज सहवाग,पठान को जल्दी आउट कर दो। केवल नीचे के ठुकठुकिया खिलाड़ियों को विकेट पर टिकाओ। सौ रुपये का प्रसाद चढ़ाउंगी।

२. हे ईश्वर, आज का मैच डकबर्थ-लुइस खाते में डाल दो। हफ़्ते भर तुम्हारा नाम लूंगी। आज मुझे जल्दी घर वापस आना है। बहुत सर दर्द हो रहा है। लगता है माइग्रेन उठने वाला है।

३.हे बजरंगबली, आज शीला का मैच हाई स्कोरिंग करा दो। अपने मेकअप और ब्यूटीशियन के बारे में बड़ी-बड़ी डींगे हाँक रही है। जहाँ चौके-छक्के पड़ेंगे। सारा मेकअप खुल जायेगा टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की तरह।

४. हे प्रभु, आज कुछ ऐसा करा दो कि हर गेंद पर अम्पायर तीसरे अंपायर से निर्णय मांगे। मैच भले देर तक चले लेकिन गेंदों के बीच में अंतराल रहे ताकि हर गेंद के बाद लोकपाल बिल की तरह झटके न लगें।

५. हे भगवान, जो-जो खिलाड़ी हमको इस जन्म में अपने छक्के-चौकों से हिला-हिलाकर हलकान किये हैं उनको आप अगले जनम चीयरलीडरई का काम देना। साथ में उनको इस जनम के मैचों की यादे भी देना ताकि उनको यह एहसास हो सके कि उनकी हरकतों के चलते हमारे नाजुक शरीर की क्या गत होती होगी।

ईश्वर उनकी प्रार्थनाओं को सुने, गेंद फेंकने वाले और रन बनाने वाली की प्रार्थना को भी सुने। मेरी प्रार्थना तो केवल यही है कि क्रिकेट के धीरज वाले पुराने दिन वापस लौंटें और चीयरबालाओं से इतनी मेहनत न कराई जाये। कम से कम उनको बैठने के लिये स्टूल और पहनने के लिये पूरे कपड़े मुहैया कराये जाएँ।

२३ मई २०११