हास्य व्यंग्य

बैठकबाजी
डॉ. बालकरण पाल


बैठकबाजी की महिमा अपरंपार है और जितने भी किस्म की बाजियाँ हमारे दश में प्रचलित है, उन सबमें बैठकबाजी सर्वाधिक लोकप्रिय एवं श्रेष्ठ है। इसका अपना अलग ही आनंद है। इस स्वर्गिक आनंद को वही समझ सकते हैं, जिनहोंने कभी इसका लुत्फ उठाया है। बाइबिल की भाषा में कहा जा सकता है- वे धन्य हैं जिन्होंने बैठकबाजी की है। और जिन्हें कभी बैठकबाजी का अवसर ही नसीब नहीं हुआ उनके लिये तू क्या जाने वाइज कि तूने पी ही नहीं।

हमरे देश में बैठकबाजी की एक सुदीर्घ परंपरा है जो अनादि काल से आज तक न केवल जीवंत है अपितु निरंतर विकासशील है। बैठकबाजी वस्तुतः हमारी विरासत है, हमारी पहचान है। यह हमारी रग रग में यों बसी है ज्यों पुहुपन में पास। औसत हिंदुस्तानी स्वभाव से ही पैठकबाज होता है। जब तक वह दो चार बैठकबाजी न कर ले उसके पेट का पानी नहीं पचता। हमारे देश का यह परम सौभाग्य है कि हमारे यहाँ एक से एक इतिहास प्रसिद्ध बैठकबाज हुए हैं। गाँव की चौपालों से लेकर दिल्ली की संसद तक बैठकबाजों के एक से एक नायाब नमूने बिखरे पड़े हैं। कैसी भी समस्या हो बैठकबाजी के बिना उसका कोई हल नहीं निकल सकता। बैठकबाजी हमारे सारे मुद्दों का इलाज है। बकौल कवि पलट शायर दुष्यंत के
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल जेरे बहर दिल्ली में है ये मुद्दआ

बैठकबाजी को विज्ञान माना जाए अथवा कला, इसके विषय में विद्वानों में मतबेद है। कुछ विद्वान इसे विज्ञान मानते हैं और कुछ कला। इसके साथ ही एक वर्ग समन्वयवादी विद्वानों का भी है जो इसे विज्ञान और कला दोनो मानते हैं। इन पंक्तियों का लेखक इसी समन्वयवादी वर्ग का है।

बैठकबाजी की कई शैलियाँ हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है- बैठकबाजी की सरकारी शैली। प्रस्तुत लेख इसी शैली पर केन्द्रत है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस शैली का विकास सरकारी मंत्रालयों, विभागों और उपक्रमों के गलियारों में हुआ है। इस शैली के विकास में केंद्र और राज्य दोनो का बराबर का योगदान है। बैठकबाजी वस्तुतः सरकारी कार्यप्रणाली का एक अभिन्न अंग है। बिना बैठकों के सरकार का कोई काम आगे नहीं खिसकता। इका दोहरा पयोग है। काम को करने और न करने दोनो के लिये बैठकबाजी को इस्तेमाल किया जा सकता है। किसी मामले को लटकाने का सबसे बेहतरीन तरीका है उसे समिति या आयोग के सुपुर्द कर दिया जाय। बैठकों पर बैठकें होती रहेंगी और मामला हिंदुस्तानी अदालतों में फँसे मुकदमों की तरह खिंचता रहेगा बरसों, और जब तक फैलसा होगा तब तक मुद्दई और मद्दालेह दोनो ही न रहेंगे। यानी म
र गया साँप और लाठी भी न टूटी।

बैठकबाजी से स्वस्थ राष्ट्रीय दृष्टिकोण के विकास में भी मदद मिलती है। परिपाटी के अनुसार देश के किसी एक छोर पर स्थित कार्यालय की किसी समिति की बैठक देश के किसी दूसरे छोर पर आयोजित की जाती है और हर बार बैठक का केंद्र बदलता रहता है। कभी शिमला कभी मसूरी कभी ऊटी। उससे सामान्य सदस्यों को देश भ्रमण के या यों कहें देश दर्शन के अवसर प्राप्त होते हैं जिससे क्षेत्रीयता जैसी संकीर्ण भावना के उन्मूलन में मदद मिलती है। हाल ही में इस दिशा में विदेश भ्रमण का नया क्षितिज खुला है। इससे निश्चय ही अंतर्राष्ट्रीय समझ और भाईचारे के विकास में मदद मिलेगी।

बैठकबाजी से भारतीय विमान कंपनियों और पंचतारा होटलों को व्यवसाय मिलता है जो नगर विमानन और होटल व्यवसाय के विकास में सहायक है। यहाँ भारतीय रेल को मिलनेवाले कारोबार का उल्लेख इसलिये नहीं किया जा रहा है क्यों कि बैठकबाजी के लिये रेलयात्रा का प्रतिशत विमान की तुलना में लगभग नगण्य है। बैठकबाजी प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय बढ़ाने में भी सहायक है। बैठकों में भाग लेने वालों के लिये आने जाने खाने पीने ठहरने आदि की व्यवस्था तो स
रकारी खर्चे पर होती ही है, आयकर मुक्त यात्रा भत्ता और काल्पनिक टैक्सी बिलों का भुगतान अलग से होता है। कुछ लोगों ने तो यात्रा भत्ता बनाने में अच्छी खासी विशेषज्ञता हासिल कर ली है।

बैठकें सामान्य सदस्यों के पारिवारिक जीवन दृष्टि से भी उयोगी हैं। साहब के साथ मेमसहब और बाबा लोगों का भी भ्रमण हो जाता है। यानी उनके लिये यह सरकारी पिकनिक होती है। जरूरी शापिंग भी हो जाती है और हवा पानी भी बदल जाता है। बैठकों का इंतजाम भी मौसम देखकर किया जाता है। गरमियों में होनेवली बैठकें हिल स्टेशन पर ही रखी जाती हैं। वैसे इस काम में बड़ी  दूरदर्शिता की आवश्यकता होती है।

बैठकबाजी मे आदान प्रदान की भी काफी गुंजाइश है। आप हमें अपनी कमेटी में रख लें। हम आपको अपनी मे रख लेंगे। कभी हम मेजबान आप मेहमान तो कभी आप मेजबान हम मेहमान। इससे आपसी भाईचारा बढ़ता है।

कुल मिलाकर यह कि बैठकबाजी, प्रेम, द्वेष, पारिवारिक राजनैतिक घरेलू और सरकारी सभी दृष्टियों से एक उपयोगी वस्तु है। जिसने इसको निभाया है वही इसका सुख या दुख समझ सकता है। ईश्वर करे आपकी सभी बैठकबाजियाँ मंगलमय रहें। कभी कोई दुखद घटना न हो। इति बैठकबाजी आख्यान।

२८ मार्च २०११