हास्य व्यंग्य

पानी डरा रहा है
-प्रेम जनमेजय


मैं दिल्लीवासी हूँ इसलिए मेरे नल में दिल्लीवाली यमुना का जल आता है, हरियाणा या उत्तर प्रदेश वाली यमुना का जल नहीं। आप भी तो महाराष्ट्र, सौराष्ट्र आदि राष्ट्रों के वासी होंगे और आपके नल में भी आपके राष्ट्र वाला पानी ही आता होगा। तो मित्रों मेरे नल में जो दिल्ली वाली यमुना का जल आता है उसको पीते ही आपको ईश्वर समीप दिखाई देने लगता है। ऐसे ही पवित्र जल में नहाते हुए मैं नहाने के अतिरिक्त गा रहा था... कान्हा तेरी यमुना मैली हो गई, दिल्ली के पाप धोते-धोते।'

राधा कांत ने तो मेरी पुकार नहीं सुनी, राधेलाल ने सुन ली। राधेलाल मेरे पड़ोसी हैं, भगवान ऐसा पड़ोसी सब को दे, निंदक को नेवरे रखने की आवश्यकता खत्म हो जाती है। राधेलाल में विरोधी दल की आत्मा का निवास है इसलिए मेरे विरोध का कोई अवसर वो चूकते नहीं हैं। इस बार भी नहीं चूके और मेरी पत्नी के सामने मेरे फ़िल्मी ज्ञान की खिल्ली उड़ाते हुए बोले, ''देखा भाभी जी इसे कोई भी काम सही नहीं आता है। इसे आसान-सा गाना नहीं आता है। प्यारे गाना इस तरह से है- राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते-धोते। यमुना ने आज तक किसी के पाप धोए हैं?''

सच कहा राधेलाल ने कि यमुना ने पाप धोए नहीं हैं, एकत्रित ही किए हैं, ख़ासकर दिल्ली वाली यमुना ने। और सच कहा मेरी पत्नी ने, ''अरे भाई साहब, इन्होंने आजतक कोई काम सही किया है जो अब करेंगे? किया होता तो क्या हम इस दो कमरों के सरकारी मकान में सड़ रहे होते, इनके साथ काम करने वाले शर्मा जी की तरह तिमंज़िला कोठी न होती हमारी? हमारी तो गंगा और यमुना क्या मैली होंगी, उनमें तो पानी ही नहीं है।''

मैंने पत्नी की बात को सदा की तरह अनसुना करते हुए कहा, ''पर राधेलाल हमारी दिल्ली की नदी तो यमुना है, हम तो दिल्ली की ही बात करेंगे। वैसे भी राधेलाल वो गंगा हो या यमुना, कृष्णा हो या कावेरी सभी के किनारों पर इन नदियों को मैला करने वाले उपादान-- विधानसभाएँ, पुलिस स्टेशन, सरकारी कार्यालय आदि मौजूद हैं। ये गीत तो किसी भी नदी के साथ गाया जा सकता है। जहाँ नदी न हो समुद्र के साथ गा लो।''

राधेलाल ने फिर मेरी खुश्की उड़ाते हुए कहा, ''गा लो पर प्रेम भाई जितना गाना है, ये गाने आप अधिक नहीं गा पाएँगे क्योंकि बहुत जल्दी बिन पानी सब सून होने जा रहा है। भविष्यवाणी हो चुकी है कि अगला विश्वयुद्ध पानी पर लड़ा जाएगा। और आप तो हिंदी वाले हैं जानते ही हैं कि रहीम ने बहुत पहले ही चेता दिया था, ''रहिमन पानी रखिए, बिन पानी सब सून। हमने पानी रखा नहीं तो अब सब सून होने ही जा रहा है।''

मैंने पाया मेरा पड़ोसी होने और चिर विरोधी होने के बावजूद राधेलाल मुझसे सहमति जता रहा है। वो मेरी ही तरह चिंतित है। मैंने कहा, ''राधेलाल जी यह क्या पाकिस्तान की तरह आप अपना पड़ोस-धर्म भूल रहे हैं, आपको तो मेरे निरंतर विरोध से मुझे आतंकित करना है।''

राधेलाल ने कहा, ''प्रेम भाई जब मानवता पर संकट हो तो हमें छोटे विरोध भूल ही जाने चाहिए। आप तो देख रही रहे हैं कि पीने का ही नहीं मनुष्य के अंदर का पानी भी सूख रहा है। मानवीय रिश्ते सूखकर काँटा हो गए हैं। हमारे सामाजिक जीवन में से गाँव, मोहल्ला तो गायब हो ही चुके थे, अब परिवार भी छिन गया है। अलग-अलग स्वाद वाला पानी गायब हो गया है, रह गया है तो एक ही स्वाद वाला मिनरल वॉटर। बदलते होंगे कुछ कोस में भाषा और कुछ कोस में पानी, आजकल कुछ नहीं बदलता। मैं पशुवत जीवन जीने वाले मनुष्य की बात नहीं कर रहा हूँ जो आज भी जोहड़, तालाब और कुँओं का पानी पीता है और अपनी भाषा बोलता है, मैं तो उस सभ्य मनुष्य की बात कर रहा हूँ जो मिनरल वॉटर पीता है और पाँच सितारा भाषा बोलता है। ऐसे सभ्य मनुष्य कितने कोस चल लें उनकी भाषा और पानी नहीं बदलता है। सभ्य मनुष्य तो दूसरों को सभ्य बनाता है ताकि उसकी सभ्यता टिकी रहे और उसे सँभालने वाले गुलाम मिल जाएँ। आप तो जानते ही हैं कि आजकल अमेरिका विश्व को सभ्य बनाने में लगा हुआ है। उसने हमारे देश को बता दिया है कि हमारा खानपान असभ्य है और इसके कारण ही विश्व में अन्न संकट पैदा हुआ है। वो हमें बता रहा है कि हमारे खानपान की आदतें ठीक नहीं हैं और हमें खाने की तमीज़ नहीं है। हमारी राजनीति, हमारे शेयर बाज़ार, हमारी युवा शक्ति आदि तो वहाँ से संचालित हो ही रहे हैं, वो दिन दूर नहीं जब हमारा खानपान भी वहाँ से संचालित होने लगेगा।'' ये कहकर राधेलाल ऐसे उदास हो गया जैसे वो संस्कारयुक्त बहन जी दिखने वाली भारतीय लड़की का पिता हो।

पानी सदा से डराता रहा है कभी अपने अतिरेक से और कभी अपने सूखेपन से। ज़मीन का पानी सूख रहा है और समुद्र का पानी किनारे बसे शहरों की लीलने के लिए अपना विकास कर रहा है। मुझे विश्वास हे कि जबतक मनुष्य के अंदर का पानी नहीं सूखेगा, राधेलाल की तरह चिर विरोधी होने के बावजूद मनुष्य हर खतरे के ख़िलाफ़ एकजुट रहेगा, तबतक पानी चाहे मानव को कितना डरा ले पर पराजित नहीं कर सकेगा।

२६ मई २००८