हास्य व्यंग्य | |
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हम निंदा करते
हैं |
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हमने निंदा की है, हम निंदा कर रहे हैं और हम निंदा
करते रहेंगे। जैसे-जैसे जब-जब धर्म की हानि होती है और प्रभु जन्म लेते हैं वैसे ही
जब-जब इस देश में बम-विस्फोट होता है, हममें निंदा जन्म लेती है और उसे हम करते
हैं।हम कड़े स्वर में निंदा करते हैं, हम अति कड़े स्वर में निंदा करते हैं और हम
अति-अति कड़े स्वर में निंदा करते हैं। जितना बड़ा ब्लास्ट होता है हमारी निंदा
उतनी ही कड़ी होती है। हम चाहे कोई और कदम उठाने में कितनी ही देर कर लें पर निंदा
करने में देरी नहीं करते हैं। आपने देखा ही होगा कि उधर ब्लास्ट हुआ और हमारी निंदा
ब्रेकिंग न्यूज में चमकने लगती है। इधर लोगों के घायल होने के समाचार, उनके मरने के
समाचार फ्लैश कर रहे होते हैं और उधर हमारी सरकार के अति विशिष्ट लोगों द्वारा की
गई निंदा चमक रही होती है। आप जानते नहीं हैं कि यह निंदा बड़ा ही महरम का काम करती
है। जनता को लगता है कि सरकार खाली नहीं बैठी है, तत्काल कुछ तो कर रही है। हम केवल
निंदा नहीं करते हैं अपितु निंदा के साथ मुआवज़ा भी बाँटते हैं। हम हर मरने वाले के
परिवार को कम से कम एक लाख की रक्म भी देते हैं। हमारी निंदा में कोरे शब्द नहीं
हैं। अगली बार वोट हमें ही देना मेरे आका! निंदा करने में हम ऊँच-नीच का ध्यान नहीं करते हैं, जिसे भी अवसर मिलता है वो निंदा करने को स्वतंत्र है। कुछ भी और करने से पहले हाईकमांड की इजाज़त की आवश्यकता होती है पर निंदा करने के लिए हमें किसी की इजाज़त की आवश्यकता नहीं पड़ती है। निंदा करने के लिए हम स्वतंत्र हैं। हम व्यक्तिगत रूप से निंदा करते हैं और कैबिनेट की मीटिंग बुलाकर सामूहिक रूप से भी निंदा करते हैं। जब भी ब्लास्ट होता है हम निंदा करते ही हैं। इस निंदा में यू टर्न लेने की आवश्यकता नहीं है। आप तो जानते ही हैं कि राजनीति में कितनी बार थूक कर चाटना होता है और गलती से हाई कमांड की निंदा हो जाए तो... राम राम। हम निंदा करते हैं क्योंकि इतनी जल्दी हम कुछ और नहीं कर सकते। वैसे इस मामले में कोई कर भी क्या सकता है। अब तो हमारे पड़ोसी राज्य में प्रजातंत्र आ गया है और वो भी आतंकवाद से पीड़ित है। ऐसे में कोई क्या कर सकता है? अब अमेरिका की बात और है। उसे हमारी तरह पड़ोस-धर्म थोड़े ही निभाना है। हम तो भारतीय हैं, शांति और अहिंसा के पुजारी, हम कोई अमेरिका की तरह गुंडे थोड़े ही हैं जो वहाँ बैठा हमारे पड़ोस के आतंकवादियों पर आक्रमण करता औ' करवाता रहता है। चीन को ज़रा हाथ लगाकर दिखाए। वैसे आप यह तो जानते ही हैं कि चीन भी निंदा करने में कम ही विश्वास करता है। आप का जनरल नॉलेज इतना तो होगा ही कि हम विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र हैं और हमें प्रजातांत्रिक मूल्यों का ख़याल रखना होता है। हम पर बहुत ज़िम्मेदारी है। अब अमेरिका को देखिए, कहने को तो स्वयं को प्रजातांत्रिक मूल्यों का रक्षक कहता है पर आतंकवादियों को समाप्त करने के नाम पर विश्व में कहीं भी आक्रमण कर देता है। वो तो डरपोक है। आपने देखा ही होगा कि ११ सितम्बर के धमाकों से वो कितना डर गया था। आज तक डरा हुआ है। उसके बाद से उसके यहाँ कुछ हुआ? नहीं हुआ न? फिर भी डरा हुआ है। बिना कुछ हुए डरता है। जो डर गया समझो मर गया। हम तो बिल्कुल नहीं डरते। उसके बाद से हमारे यहाँ कितने धमाके हो गए। हर बार हमने धमाकों की कड़े शब्दों में निंदा की है। ऐसे समय में हमारी देखा-देखी अमेरिका भी निंदा कर देता है। धमाके हमारे यहाँ होते हैं, निंदा वो करता है। इस मामले में वो हमारा पिछलग्गू है ... खी... खी...खी अमेरिका डर जाता है और कार्रवाई करता है, हम डरते
नहीं हैं इसलिए निंदा करते हैं। निंदा करना अत्यधिक ही साहस का काम है जनाब। अच्छे-
अच्छों को टैं बोल जाती है। अपनी आत्मा को कितना मारना पड़ता है! अपने नपुंसक होने
का अहसास... हम निंदा के लिए समुचित अवसर और पूरा समय प्रदान करते हैं। हमारी पकड़ में जो अपराधी आ जाते हैं, चाहें उन्हें फांसी की सजा घोषित हो चुकी हो, पर हम उसे समय पर समय देते जाते हैं कि जिसका जितना भी मन चाहे, जितना भी समय चाहिए, उसकी निंदा कर ले। आप तो जानते ही है जितनी अधिक निंदा होती है, पाप भी उतने ही धुलते हैं। कबीर के आँगन में तो एक निंदक रहा होगा, हमारे आँगन में तो कई निंदक अपनी कुटिया छवाए मुटियाते रहते हैं। हमें कभी राष्ट्रीय स्तर पर, कभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निंदा जो करनी होती है। वैसे हे मतदाता तू घबरा मत, तू चाहेगा तो इस निंदा के अतिरिक्त हम कुछ और भी कर देंगे। चुनाव आने दे, तू जो चाहेगा वो करने का आश्वासन तो हम दे ही देंगे। तू कहेगा तो हम ढेर-सारी इंक्वायरी करवा देंगे। प्रजातंत्र है, तेरा जितना मन चाहे, हमारी निंदा करता रह, बस वोट हमें देना मत भूलना। १५ दिसंबर २००८ |