हास्य व्यंग्य

आतंकवाद बड़े काम की चीज़
अभिरंजन कुमार


ब्लास्ट की ख़बर आई है। न्यूज़ रूम में अचानक गहमागहमी बढ़ गई है। हत्या और बलात्कार की ख़बरों के अभाव में आज वैसे ही ख़बरों का अकाल था। संपादक जूझ रहे थे कि हेडलाइंस क्या हों। माहौल में एक ठंडापन पसरा हुआ। सब शांत। कोई बदन ऐंठ रहा है, कोई अपने फेफड़े फूँकने के लिए नीचे स्मोकिंग ज़ोन में चला गया है। कुछ लोगों को इन दिनों ब्लॉग्स का बुखार चढ़ा हुआ है, वो ब्लॉग चर्चा में मशगूल हैं। लेकिन इस हमले का शुक्रिया। सब अचानक हरकत में आ गए हैं। न्यूज़रूम में शोर छा गया है। सब चिल्ला रहे हैं। आउटपुट वाले भी, इनपुट वाले भी, प्रोडक्शन वाले भी। चैनल के स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज़ की लाल-लाल पट्टियों ने एक चौथाई जगह घेर ली है। रिपीट प्रोग्राम को क्रैश करके एंकर ने मोर्चा संभाल लिया है। गले में कितनी जान है, इसके इम्तहान का वक्त आ गया है। हेडलाइंस का संकट खत्म हो गया है। चार हेडलाइंस इसी धमाके से आ जाएँगी। प्रधानमंत्री ने इस हमले की निंदा कर दी है। सुपर प्रधानमंत्री ने इसे आतंकवादियों की कायराना हरकत करार दया है। कह दिया है कि उनके मंसूबे कामयाब नहीं होने पाएँगे। गृहमंत्री का बुद्धिमत्तापूर्ण बयान भी आ गया है। उन्होंने कह दिया है कि शुरुआती संकेतों के मुताबिक इसके तार सीमा पार से जुड़े हैं। अभी थोड़ी देर में मंत्री-अफ़सर सब घटना स्थल की ओर कूच कर जाएँगे। मरने वालों के परिवारों के लिए मुआवाज़े का एलान भी कुछ ही देर में हो जाएगा। घायलों को भी पचीस-पचास हज़ार रुपये मिल जाएँगे। हम लोग आतंकवाद पर यों ही हाय-तौबा मचाते रहते हैं। इसे समस्या की तरह नहीं, बल्कि एक वरदान की तरह देखना चाहिए। कहीं कोई धमाका होता है तो लगता है कि देश में सब हरकत में हैं। कहीं कोई काम हो रहा है। देश की चिंता करने वाले लोग अभी ज़िंदा हैं।

आतंकवाद से सबको फ़ायदा है। न्यूज़ चैनलों को फ़ायदा है। अख़बारों को फ़ायदा है। आज की तारीख में मी मीडिया के लिए एक बड़े धमाके से बड़ी ख़बर कोई नहीं हो सकती। आप इस पर घंटों नहीं, कई दिनों तक खेल सकते हैं। घटना स्थल की तस्वीरें, अस्पताल की तस्वीरें, रोते-पीटते परिजनों की तस्वीरें, घायलों की मदद के लिए बढ़े लोगों की तस्वीरें, नेताओं और अफ़सरों के दौरे की तस्वीरें, तमाम नेताओं के बयान, मुआवाज़े का एलान- ये सब आपको पूरे दिन का भरपूर मसाला दे देते हैं। दूसरे दिन आप पीड़ित परिवारों की त्रासदी दिखाकर उसके मानवीय पहलुओं पर उँगली रख सकते हैं। ब्लास्ट में कोई ऐसा ज़रूर मरा होगा, जिसकी अभी-अभी शादी हुई होगी या होने वाली होगी। किसी की माँ, किसी का बाप, किसी की पत्नी, किसी के पति, किसी के बच्चे इस ब्लास्ट में ज़रूर क़ुर्बान हुए होंगे। कई ऐसे लोग होंगे जो इस धमाके के बाद से लापता होंगे। आप दिखा सकते हैं कि किस तरह उनके परिवारों के लोग उनकी तस्वीर लेकर अस्पतालों में, पुलिस थानों में उन्हें ढूँढ़ने की जद्दोजहद में लगे हैं। जाँच से जुड़े पहलू, इंटेलीजेंस की विफलता, पुलिस की नाकामी ये सब तमाम मसले हैं, जिनपर कई स्टोरीज़ हो सकती हैं। इसके अलावा यह दिखाना भी दिलचस्प रहता है कि किस तरह इतने बड़े धमाके के बाद पूरा शहर अगली ही सुबह काम पर जुट जाता है। जज़्बे को सलाम। दो सौ लोग मरे हैं, बाकी लोग अपने-अपने काम पर निकल पड़े हैं। मुंबई तुझे सलाम। दिल्ली तुझे सलाम। बनारस तुझे सलाम। इसके बाद मुआवज़ा मिलने में परेशानी की ख़बरें हैं। देश भर में आतंकवाद के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन की ख़बरें हैं। जैसे-जैसे दिन-महीने बीतेंगे तो जाँच में ढिलाई, संदिग्धों से पूछताछ और अदालती कार्यवाहियाँ खबर बनेंगी। साल बीत जाएगा तो बरसी भी ख़बर बनेगी। एक धमाके में कितना कुछ है।

...और सिर्फ़ मीडिया को ही क्यों, इससे नेताओं को फ़ायदा है। अधिकारियों को फ़ायदा है। सत्तारूढ दल को फ़ायदा है। विपक्षी दल को फ़ायदा है। आतंकवाद का चूल्हा गरम हो, तो राजनीति की रोटियों को पकाने के लिए इससे अच्छी आँच नहीं मिल सकती। इससे हिंदू वोटों की राजनीति करने वाले को भी फ़ायदा है। मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले को भी फ़ायदा है। हिंदू वोटों की राजनीति करने वाले मुसलमानों के ख़िलाफ़ बोलकर हिंदू वोटरों को लामबंद कर सकते हैं। मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले मुसलमानों के मन में असुरक्षा की भावना सुलगाकर फ़ायदा उठा सकते हैं। कोई आतंकवादी पकड़ा जाएगा, तो यह हायतौबा मचाने के लिए बड़ा ही उपयुक्त मौका रहता है कि देखो-देखो, कैसे चुन-चुनकर मुसलमानों को पकड़ा जा रहा है और कैसे इस देश के हिंदू तुम्हें हमें शक की निगाह से देखते हैं।

आतंकवाद से भारत की सरकार को फ़ायदा है। आतंकवाद से पाकिस्तान की सरकार को फ़ायदा है। आतंकवाद है तो बाकी सारे मुद्दे गौण हैं। आतंकवाद है तो न भूख है, न गरीबी, न बेरोज़गारी। आतंकवाद है तो न कोई बीमार है, न कोई अनपढ़। न बिजली-पानी का संकट है, न सड़कों की हालत खस्ता है। दोनों देश एक-दूसरे के ख़िलाफ़ बयान देते रहें। हिंदू मुसलमान के ख़िलाफ़ बोलते रहें, मुसलमान हिंदू के ख़िलाफ़ बोलते रहें। देश चलता रहेगा। सरकारें चलती रहेंगी। न बगावत होगी, न आंदोलन होगा।

आतंकवाद है तो अमेरिका को फ़ायदा है। ब्रिटेन को फ़ायदा है। उन्हें लड़ने और लड़ाने की वजहें मिलती हैं। इराक और अफ़ग़ानिस्तान पर हमला करने की वजहें मिलती हैं। हथियार बेचने की वजहें मिलती हैं। वो तेल मिलता है, जिससे अर्थव्यवस्था के जंग खाए पुरज़ों में चिकनाई आती है। पूरी दुनिया पर उनकी दादागिरी कायम होती है। आतंकवाद है तो ओसामा बिन लादेन, सद्दाम हुसैन सब हीरो हैं। कोई जीकर हीरो है, कोई मरकर हीरो है। आतंकवाद है तो दुनिया में मानवाधिकारवादियों के भी पौ-बारह हैं। आतंकवादियों पर पुलिस और क़ानून के ज़ुल्म को उठाने और उनसे हुई मुठभेड़ों पर सवाल खड़े करने से उनकी दुकान धकाधक चलती है। बुद्धिजीवियों का अटेंशन मिलता है। उन पर बड़े-बड़े लेख लिखे जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की झड़ी लग जाती है।

आतंकवाद है तो आतंकवादियों को फ़ायदा है। कितने बेरोज़गार नौजवानों के परिवार पलते हैं। बेरोज़गारी के आलम में नौकरियाँ माँग रहें आम युवकों पर या अपनी कोई समस्या लेकर आंदोलन कर रहे आम लोगों के लिए सरकारों के पास लाठी-गोलियाँ हैं, लेकिन आतंकवादियों को बातचीत की मेज़ पर लाने के लिए बड़े-बड़े देशों की सरकारें तरसती हैं। गुपचुप वार्ताएँ होती हैं, खुली वार्ताएँ होती हैं। सरकारों से समझौता करके नेता बन जाने का मौका भी रहता है। उनकी इस बात के लिए मन्नत होती है कि हथियार छोड़कर मुख्य धारा में आ जाओ। लोकतंत्र की बयार है। चुनाव लड़ो। जीतो और राज करो।

जिन्हें आतंकवाद का शिकार कहते हैं, उन्हें भी फ़ायदा है। उनमें से ज़्यादातर ऐसे लोग होते हैं, जो अपने परिवार के लिए पूरी ज़िंदगी में पाँच लाख रुपये नहीं कमा सकते। वो मुआवाज़े के तौर पर उन्हें एक ही बार में मिल जाता है। पाँच लोग मरें, तो पच्चीस लाख। यानी बचा हुआ छठा आदमी मालामाल। लोगों की सहानुभूति अलग मिलती है। बड़े नेताओं-अफ़सरों के कदमों से घर की माटी तो पवित्र होती ही है। अख़बार में नाम छपते हैं। टीवी पर चेहरा दिखता है। उनकी रोती, छाती पीटती हुई तस्वीरें देख-देखकर दुनिया में मानवता ज़िंदा रहती है।

...तो जिस आतंकवाद से मानवता के फूल खिलते हैं और चमन में हर तरफ़ फ़ायदे की बहार आ जाती है- उस पर इतने सवाल क्यों? उससे इतनी नफ़रत क्यों? इसे सेलेब्रेट करिए और दुनिया में इसे कायम रखने में बड़े-बड़े मुल्कों की सरकारों का साथ दीजिए।

१४ जनवरी २००८