हास्य व्यंग्य | |
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आना नए साहब का |
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ए साहब आ रहे हैं। नए साहब का आगमन ऐसा है जैसे मानो
अंगना में बहार आ गई हो। पीतमुखी चाटुकारों के बदन पर नव जीवन का संचार हो गया है?
दिन बहुरेंगे उनके। कामना की बेल परवान चढ़ेगी। ईर्ष्या के दंश पैने होंगे। नए साहब
के आने से पहले वातावरण में तरह-तरह की अफ़वाहें उनके व्यक्तित्व को लेकर तैरती
रही। किसी ने कहा बड़ा खूसट और सिद्धान्तवादी आदमी है। तो दूसरा बोल उठा - 'अरे
क्यों घबरा रहे हो यार, मेरे साथ तो काम किया है, देवता पुरुष हैं।' कार्यालय लंबे समय से अनाथ था। साहब का पद खाली चल रहा था। इस बीच में कई कार्यवाहक साहब बैठे और वीरगति को प्राप्त हो गए। कुछ एक ने तो ज़िम्मेदारी लेना मुनासिब न समझ मेडिकल लीव का अमोध अस्त्र चलाना बेहतर समझा। नए साहब के स्वागत की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। कार्यालय में कई धडे थे। एक का नेतृत्व वर्मा जी के हाथों में था दूसरे का नेतृत्व शर्मा जी के हाथ में था। बीच में कई ढुलकने मिश्रा जी, कर्मा जी और चोपड़ा जी जैसे भी थे। नए साहब के विषय में एक-एक सूचनाएँ एकत्र की जा रही थीं। मसलन साहब की पसंद और नापसंद। साहब का पारिवारिक विवरण। उनकी रिटायरमेंट से दूरी। सरकारी विभागों में सामान्यत: यह माना जाता है कि सेवा निवृत्ति के निकटस्थ व्यक्ति आमतौर पर वीतरागी आचरण करता है। प्रशासन, व्यवस्था आदि जैसे शब्दों से उसे वितृष्णा हो जाती है और वो कामचलाऊ सरकार सा दृष्टिकोण रखता है। ऐसे में एक दूसरे को पटखनी देने के इच्छुक परस्पर विरोधी गुट शर्मा जी और वर्मा जी निराश हो सकते थे। लेकिन जब पता चला कि नए साहब अपेक्षाकृत नए ही हैं और एक लंबी पारी खेलने की सामर्थ्य रखते हैं तो शीत युद्ध का मज़ा दुगुना हो गया। परस्पर रणनीतियाँ तय होने लगीं। वर्मा जी ने घोषणा कर दी कि नए साहब उनके मातहत काम कर चुके हैं। ऐसा कहकर उन्होंने विरोधी खेमे पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना शुरू कर दिया था। वर्मा जी प्राय: ऐसी घोषणा हर नए साहब के विषय में कर देते थे। यह बात अलग है कि कुछ दिन बाद वो उन्हीं परम पूजनीय साहबों को गरियाते हुए पाए जाते थे। नए साहब का पूर्ण बायोडेटा उपलब्ध होने पर सब दम साधे खेल शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। नए साहब की प्रतीक्षा में दिन-ब-दिन भारी हो रहा था। आज ज्वाइन करेंगे या कल। दोपहर के पहले या बाद में जैसी चर्चाएँ चल रही थीं। तब ही वर्मा जी ने विस्फोटक सूचना देते हुए सनसनी फैला दी नए साहब फलां सत्तारूढ़ विधायक के रिश्तेदार हैं और विधायक मंत्री जी का कितना मुँह लगा है ये किसी से छिपा नहीं है। ये अक्खा प्रदेश जानता है। वर्मा जी की सूचना ने उनके मान को और बढ़ाया। उनके खेमे के अनुयायियों ने जय-जयकार की। हर्षध्वनि हुई। वर्मा जी नए साहब के कक्ष में बिला गए। साहब के कमरे की धूल झाड़ी जा रही थी। फूलदान के फूल बदले जा रहे थे। कूलर में पानी भरा जा रहा था। टेबल कवर नया आ गया था। ये सब युद्धस्तरीय तैयारियाँ बड़े बाबू जी के निर्देशन में चल रही थीं। मुझे देखकर बड़े बाबू जी बोले - 'कैसे हैं आने वाले साहब? मैंने कहा - 'सुनते हैं सज्जन व्यक्ति हैं।' बड़े बाबू जी का मूड़ खराब हो गया। बोले -'फिर तो फेल हो जाएगा... यहाँ तो ऐसा आदमी चाहिए जो सब के डंडा डाल कर रखे।' मैं उनके इस आप्त वचन से तृप्त हुआ। तभी अचानक नए साहब पुरानी बाइक से हेलिकॉप्टर-सा गर्जन करते हुए कार्यालय परिसर में प्रविष्ट हुए। सभी कर्मचारियों ने अपनी-अपनी पोज़ीशन ले ली। वर्मा जी लपके और ऐसे हाथ जोड़कर स्वागत किया जैसे साक्षात लीला पुरुषोत्तम पधारे हों। स्वागत में अर्द्ध दंडवत होते हुए उन्होंने साहब की कुशलक्षेम पूछी। शर्मा जी भी कहाँ चूकने वाले थे। दल बल सहित अग्रसर हुए। शालीनता से हाथ मिलाया। पुराने तमाम संदर्भ सूत्र बताए। नए साहब असमंजस में पड़ गए। थोड़ा अचकचाए। उसी समय बड़े बाबू जी ने मंत्रालयिक कर्मचारियों का कॉर्डन एसपीजी-सा बनाया। कुछ कान में फुसफुसाए। साहब को अलग से ले जाने की कोशिश की। वर्मा जी ने शर्मा जी से कहा - 'देखो, देखो साले को... कैसा कान भर रहा है? वर्मा जी ने तेज़ी से कदम बढ़ाए और साहब को खींचकर उनके कक्ष में ले गए। साहब के स्वागत में दोनों खेमों ने अलग-अलग स्वागत पार्टियाँ आयोजित कर डाली। वर्मा धड़े में भारी परिवर्तन आ गया था। वे सब अब समय से कार्यालय आने लगे थे। वर्मा जी स्वयं काफी समय के पाबंद और कर्मठावतार हो गए थे। उनकी चपलता बच्चों को मात कर रही थी। नए साहब को प्रभावित करने की शर्मा गुट भी पूरी तरह से कोशिश कर रहा था। शर्मा गुट चाह रहा था कि कुछ लाभकारी पदों से वर्मा गुट के लोग हटाए जाएँ। वर्मा जी नए साहब को अकेला ही नहीं छोड़ते। उन्हें अपनी कारतूतों के खुलने का भय था। शर्मा जी काफी निराश थे। उन्होंने नए साहब को नए पैंतरे से मात देनी चाही। वे क्रांतिकारी की मुद्रा में आ गए। वे रोज़ नई समस्याएँ नए साहब के सामने रखते और परोक्ष रूप से ज़िम्मेदार वर्मा जी को बताते। वर्मा जी और शर्मा जी के शह और मात के खेल में नए साहब पैदल प्यादा होते जा रहे थे। उन्हें लगा वे फुटबाल हैं जिसे दो पोलों के मध्य उछाला जा रहा है। नए साहब को बड़े बाबू जी के विदुर वचन और सेवा नियम संबंधी अड़ंगे भी परेशान कर रहे थे। नए साहब को कुछ समझ नहीं आया। उन्होंने चुपचाप पलायन करना उचित समझा। एक दिन वे एक गोपनीय सरकारी आदेश से कार्य मुक्त हो गए। वर्मा जी और शर्मा जी बेरोज़गार हो गए थे। उनके मुख म्लान हो गए थे। स्टाफ फिर से नए साहब की चर्चा में व्यस्त था। नए साहब को घेरना, प्रभावित करना और चित्त कर भेज देना। हम सबका शगल था। हमारा कार्यालय नए साहबों की नर्सरी था जहाँ मसखरी-मसखरी में ही कार्यकुशलता का पाठ पढ़ाया जाता था। नए साहब का पद इन दिनों खाली है। वातावरण में उमस है। बड़े उबाऊ, बोझिल से दिन हैं ये। नेपथ्य में मानों गीत बज रहा है। - 'बिन गोपाल बैरिन भई कुंजें।' |
२४ नवंबर २००८ |