विज्ञान वार्ता

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दूर सम्वेदी उपग्रह रिसोर्ट सेट-२
डॉ. मनोज मिश्र


दूर सम्वेदी उपग्रह रिसोर्ट सेट-२ के पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण के साथ ही 'इसरो` के वैज्ञानिकों तथा अधिकारियों ने राहत की साँस ली। पिछले वर्ष जी०एस०एल०वी०डी-३ तथा जी०एस०एल०वी०एफ-०६ के असफल प्रक्षेपणों के बाद तथा 'इसरो` की व्यापारिक इकाई एन्ट्रिक्स का निजी व्यावसायिक कम्पनी 'देवास` के साथ करार के घोटाले की खबरों से भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन 'इसरो` की प्रतिष्ठा धूमिल हुई थी। देश से सबसे भरोसेमन्द प्रक्षेपण यान पी०एस०एल०वी०सी०-१६ ने एक साथ तीन उपग्रहों को सफलता पूर्वक प्रक्षेपित कर सिद्ध कर दिया कि देश को जी०एस०एल०वी० यान प्रक्षेपण क्षमता में भले ही सन्देह हो परन्तु पी०एस०एल०वी० प्रक्षेपण यान केवल भरोसेमन्द ही नहीं बल्कि किफायती भी है।

इस बार एक साथ तीन रिसोर्स सेट-२, भारत-रूप के सहयोग से बने यूथसेट तथा सिंगापुर के नानयाग टेक्निकल वि०वि के 'एक्स सेट` उपग्रह अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किये गए। इन तीनों का बजन क्रमश: १२०६ किग्रा०, ९३ किग्रा० तथा १०६ किग्रा० हैं इन सफल प्रक्षेपण से भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन के विभिन्न आयामों की चर्चा स्वाभाविक तौर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष जगत में होने लगी है।

इस बार प्रक्षेपित किये गए दूर संवेदी उपग्रह 'रिसोर्ससेट-२` के साथ ही लगभग ८००० करोड़ के वैश्विक प्रक्षेपण बाजार में भारत की विश्वसनीयता और धमक भी बढ़ी है। भारत के पास दूर संवेदी उपग्रहों की दुनिया में सबसे बड़ा समूह है तथा यह दूर संवेदी उपग्रह 'रिसोर्स सेट-१` का स्थान लेगा जिसे सन २००३ में प्रक्षेपित किया गया था। भारत के दूर सम्वेदी उपग्रह की तस्वीरें पूरी दुनिया में अपनी श्रेष्ठता के लिए जानी जाती है क्योंकि इन उपग्रहों में लगे कैमरे १ मीटर के रिजोल्यूशन से ५०० मीटर रिजोल्यूशन तक के होते है। प्रेक्षेपित दूर सम्वेदी उपग्रह 'रिसोर्ससेट-२` भारत की कृषि, पर्यावरण, पहाड़ों पर ढकी बर्फ तथा ग्लेशियर के पिघलने के बारे में जानकरी देगा। इस उपग्रह की विशेष बात यह है कि इसमें लगे तीनों कैमरे पूरी दुनिया के देशों की मिट्टी आदि के आँकड़े एकत्र करेंगे तथा इस उपग्रह द्वारा भेजी गई तस्वीरें पूरी दुनिया के देशों को उपलब्ध कराई जाएगी। इसीलिए इस 'रिसोर्ससेट-२` उपग्रह को विश्वस्तरीय उपग्रह कहा जा रहा है।

भारत विश्व बाजार में इस तरह के आँकड़ों का बड़ा विक्रेता है क्योंकि अकेले 'रिसोर्ससेट-१` के आँकड़ों का उपयोग दुनिया के १५ देश कर रहे है। 'रिसोर्ससेट-२` का उपयोग देश की जरूरतों के हिसाब से काफी ज्यादा है। फसलों की पैदावार, पर्वत शिखरों पर बर्फ तथा ज्यादा या कम बर्फ पिघलने से नदियों के अन्दर पानी की अधिकता या कमी की जानकारी, समुद्री किनारों पर पर्यावरणीय परिवर्तन तथा देश की जमीन की जानकारी जिसमे धरती के अन्दर जल की मात्रा की जानकारी, ग्रामीण क्षेत्र में सड़कों के सम्पर्क का मानचित्र तथा वनों की कटाई या कमी की देखभाल करना जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल है। इस दूर सम्वेदी उपग्रह 'रिसोर्ससेट-२` के द्वारा पूरी दुनिया के डाटा जुटाए जा सकते है अत: जुटाए गए आँकड़ो की पूरी दुनिया को जरूरत पड़ेगी जिससे दूर सम्वेदी उपग्रह प्रक्षेपण क्षेत्र के वैश्विक बाजार में व्यापारिक बढ़त भी बनेगी।

पी०एस०एल०वी० सी-१६ द्वारा भारत-रूस के सहयोग से बने उपग्रह 'यूथसेट` की उपयोगिता भी सौर ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण साबित होगी। इस उपग्रह के द्वारा 'सौर एक्स रे` तथा 'सौर गामा रे` का अध्ययन किया जा सकेगा। इन अध्ययनों से सूर्य के अन्दर चल रही हलचलों का पृथ्वी के वातावरण के ऊपरी बाहरी सतह पर असर भी चल सकेगा। तीसरा महत्वपूर्ण प्रक्षेपण सिंगापुर के तकनीकी विश्वविद्यालय द्वारा तैयार 'एक्स सेट` उपग्रह है। जिसका उपयोग सिंगापुर के घरेलू प्रयोगों के लिए किया जाएगा। यह उपग्रह भी दूर सम्वेदी उपग्रह है। जिसकी विशेषता यह है कि इसके द्वारा लिये गए चित्र बहुत ही स्पष्ट तथा सन्देशपरक होगें। यह 'एक्ससेट` उपग्रह सिगापुर का पहला छोटा उपग्रह है जिसे अंतरिक्ष की कक्षा में प्रक्षेपित किया गया है। यह उपग्रह अपने ३ वर्षीय जीवन काल में सिंगापुर के लिए वरदान साबित होगा, ऐसा सिंगापुर के लोगो का आकंलन है।

इन तीनों उपग्रहों के एक साथ प्रक्षेपण से भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन 'इसरो` वैश्विक प्रक्षेपण बाजार में एक बार फिर अपनी साख स्थापित करने में कामयाब हो गया है। यह सच है कि जहाँ एक ओर पी०एस०एल०वी० प्रक्षेपण यान के मामले में भारत ने विशेषज्ञता हासिल कर ली है वहीं दूसरी ओर जी०एस०एल०वी० यान के मामलें अभी 'इसरो` को काफी दूरी तय करनी है। ' क्रायोजविक इन्जन` के सफल परीक्षण के बाद भी जी०एस०एल०वी के द्वारा दो असफल प्रक्षेपणों ने भारत का आत्म विश्वास कुछ कम जरूर कर दिया है। अतः भविष्य में 'जी सेट-८` का प्रक्षेपण 'कोरू` के फ्रेन्च गुयाना से मई माह में प्रस्तावित है। पी०एस०एल०वी० सी-१७ तथा सी-१८ के द्वारा क्रमश: 'जी सेट-१२` तथा भारत फ्रान्स के सहयोग से 'मेधा-ट्राफिक` उपग्रहों प्रक्षेपण अगले कुछ महीनो में किया जाना है तथा इसी वर्ष पी०एस०एल०वी० सी-१९ द्वारा 'राइसेट` का प्रक्षेपण भी होगा। अत: अगले कुछ महीनों में भारत का अन्तरिक्ष अनुसन्धान क्षेत्र व्यस्त कार्यक्रमों के लिए चर्चा का विषय रहेंगे।

इस सफलता से उत्साहित होकर 'इसरो` अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेन्सी 'नासा` के सहयेाग से 'मिशन मून` पर विचार कर रही है। भारत का महत्वाकांक्षी 'चन्द्रयान-२` मिशन सन २०१३ प्रक्षेपित किया जाना है। जिसकी अनुमानित कीमत ४६२ करोड़ रूपए है। 'इसरो` के भविष्य के ये कार्यक्रम अन्तरिक्ष जगत में भारत की बढ़त की ओर इशारा कर रहे है। कृषि क्षेत्र, वैज्ञानिक शोध, मनोरंजन का क्षेत्र हो या चन्द्रमा पर उपलब्ध खनिजों का पता लगाकर उनका उपयोग करने का ममला हो, उपग्रहों की आवश्यकता बढ़ती ही जाएगी और हमें हर हाल में अपनी क्षमता विकसित कर बढ़ानी ही पड़ेगी। आधुनिक युग विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, मनोरंजन, स्वास्थ्य पर्यटन तथा कृषि के आधुनिकीकरण का युग होगा जिसमें विभिन्न प्रकार के उपग्रहों की आवश्यकता पड़ेगी। जैसे-जैसे हम विकसित होते जायेंगें वैसे-वैसे हमारी आवश्यकताएँ बढ़ती जाएगीं और प्राकृतिक संसाधन कम होते जाएँगे। इन उपग्रहों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का उचित दोहन तथा पर्यावरण संरक्षण के साधन विकसित होते जाएगें। भविष्य में वहीं देश पूरी दुनिया पर वर्चश्व कायम करेगा जिसका अंतरिक्ष क्षेत्र में दबदबा होगा।

२३ मई २०११