विज्ञान वार्ता

आईआईटी कानपुर का जुगनू अंतरिक्ष में
रूपेश कुमार


६ मार्च २०१० आईआईटी कानपुर का वह ऐतिहासिक था जब संस्थान के छात्रों ने पूर्णतया स्वदेशी और भारत का अभी तक निर्मित सभी उपग्रहों से छोटा नैनो उपग्रह, 'जुगनू' तैयार करके राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को सौंप दिया। ५० छात्रों की अथक मेहनत और जुनून के परिणाम 'जुगनू' का अनावरण करके राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इसे इसरो को सौंप दिया, जिस पर इसके प्रक्षेपण का उत्तरदायित्व है। आईआईटी कानपुर की यह परियोजना इसरो की सहायता से ही चल रही थी। अब इसरो इसकी जाँच करेगा और फिर इसे अपने रॉकेट से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर देगा।

जुगनू का भार केवल ३ किलो, लंबाई ३४ से.मी. और चौडा़ई १० से.मी. है। इसे तैयार करने में आईआईटी कानपुर के अलग-अलग विभाग के लगभग पचास छात्रों की एक टीम ने काम किया है और इसमें लगभग एक साल का समय लगा। इस परियोजना का उत्तरदायित्व मैकेनिकल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नलिनाक्ष व्यास पर था, जबकि टीम के नायक थे मैकेनिकल डिपार्टमेंट के छात्र शांतनु अग्रवाल। इस अत्यंत पेचीदा और धीरज वाले काम को पूरा करने में छात्रों को इसरो के वैज्ञानिकों का सहयोग भी मिलता रहा।

जुगनू जैसा नाम है वैसा ही इसका काम भी है। मुख्य रूप से इसका काम भी प्रकाश से जुड़ा है। इसमें लगा कैमरा धरती के अलग-अलग हिस्सों की तस्वीरें खींचकर आने वालो खतरों की सूचना देगा। संस्थान के कोऑर्डिनेटर प्रो. व्यास के अनुसार जुगनू धरती से ६००-७०० किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में एक दिन में पृथ्वी के १२ से १३ चक्कर लगाते हुए अपने इंफ्रारेड कैमरे धरती की सतह के चित्र खींचेगा। कैमरे की क्षमता सतह के कुछ मीटर भीतर तक तस्वीरें लेने की है। इससे खेती, मृदा, मृदा-कटाव, नदियों में प्रदूषण पानी की उपलब्धता के बारे में जानकारी मिलेगी। ये तस्वीरें इसरो के साथ भी साझा की जाएँगी।

जो बात इसरो के लिए सबसे अधिक लाभप्रद होगी, वो है इसमें प्रयुक्त नैनो उपकरण, जिनका निर्माण और विकास संस्थान के छात्रों ने ही किया है। अभी तक उपग्रह के लिए प्रयोग में आने वाले ऐसे आवश्यक उपकरण बड़े आकार में इसरो स्वयं ही बनाया करता था। लेकिन आईआईटी ने इसे नैनो (सूक्ष्म) कर दिया है। माना जा रहा है कि ये आविष्कार इसरो के सेटेलाइटों के लिए भी बेदह उपयोगी और कम खर्च सिद्ध होंगे। डॉ. व्यास के अनुसार इसमें दो छोटे कम्प्यूटर भी लगे हैं जो आईआईटी में ही निर्मित और विकसित हुए हैं।

इस परियोजना को इसरो की स्वीकृति अगस्त २००८ में प्राप्त हुई थी, जब पाँच घंटे की लंबी वीडियो कान्फ्रेंसिंग द्वारा आई आई टी कानपुर के छात्रों को इसरो के वैज्ञानिकों के सामने यह सिद्ध करना पड़ा कि वे इस परियोजना के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। यह एक परीक्षा की तरह था। ढाई करोड़ की बजट वाली इस परियोजना को प्रारंभ होते ८ जनवरी २००९ का दिन आ गया जब इसरो के साथ एमओयू (मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर किए गए। परियोजना के संयोजक बताते हैं कि इस काम को पूरा करने की समय सीमा दिसंबर २०१० थी पर टीम ने ग्यारह महीने पहले जनवरी में ही इसे तैयार कर के इसरो के हवाले कर दिया।

जुगनू जब तैयार होने वाला था, तब होली की छुट्टियों में कई छात्र अपने घर भी नहीं गए। जुगनू को सौंपने के बाद अब छात्र परिसर में ही स्थापित इसके भू-केंद्र जाकर दूसरे उपग्रह के संदेशों को समझने का अभ्यास कर रहे हैं। फिलहाल यह केंद्र इलेक्ट्रानिक्स विभाग में बनाया गया है लेकिन स्थाई केंद्र परिसर में ही बनकर लगभग तैयार है। अब छात्र बेकरार है, उस दिन प्रतीक्षा में जब इसरो इसे अंतरिक्ष में छोड़े जाने का ऐलान करेगा। इस बीच उस नए उपग्रह पर भी कैंपस में चर्चा शुरू हो गई जिसे जुगनू के बाद तैयार किए जाने की योजना है।

२९ मार्च २०१०