सागर-यात्रा के अपने अनुभव
होते हैं। कुछ वर्षों पहले तो मैंने लगातार पंद्रह दिनों
से भी अधिक हिंद महासागर पर गुज़ारकर अफरीका का तटबंध
स्पर्श किया था। इस बार तो ६-७ दिन ही जहाज़ पर गुज़ारने
पड़े, वे भी मौज-मस्ती के साथ अपने साथियों के बीच।
द्वीपों की माला
अरब सागर में भारत से १९२
और ३२० किलोमीटर की बीच की दूरी में है लक्षद्वीप। लगूनों
और कोरलों से भरे हुए इन द्वीपों का सौंदर्य अलग है। अरब
सागर में यहाँ-वहाँ बिखरे छोटे-बड़े ३६ द्वीपों की एक माला
का नाम है- लक्षद्वीप। इनमें १० द्वीपों में तो आबादी है,
१२ वीरान पड़े हैं और १४ बहुत छोटे द्वीप हैं जो शायद अभी
बन रहे हैं। बसे हुए दस द्वीपों में बड़े द्वीप हैं-
अंद्रोत (४.८ वर्ग किलोमीटर), मिनीक्वाय (४.४ वर्ग
किलोमीटर), कवरत्ती (३.६ वर्ग किलोमीटर) और कडमत (३.१
किलोमीटर)। बाकी द्वीप बहुत छोटे हैं। बितरा तो केवल ०.१
वर्ग किलोमीटर है। इनकी आबादी भी देखिएः अंद्रोत- ६,८१२,
मिनीक्वाय- ६,६५८, कवरत्ती- ६,६०४, कडमत्त- ३,११४। बितरा
की कुल आबादी १८१ है। इस तरह सारे लक्षद्वीप का क्षेत्रफल
केवल ३२ वर्ग किलोमीटर है और कुल आबादी ४०,२४९ है।
गुस्सैल
सागर और द्वीपों के मोती
बहुत कम लोग जानते हैं कि
लक्षद्वीप भारत की केंद्रीय प्रशासित राज्य है। यदि ध्यान
से भारत का मानचित्र देखा जाए तो केरल के समुद्र तट से अरब
सागर में मोतियों की तरह यहाँ-वहाँ बिखरे ये छोटे-छोटे
द्वीप देखे जा सकते हैं। इन द्वीपों में सबसे नीचे दक्षिण
में है- मिनीक्वाय। बाकी द्वीप पास-पास हैं। यहाँ पहुँचने
का साधन कोचीन से जहाज़ द्वारा है। दो जहाज़ चलते हैं-
भारत सीमा और भामिनदीवी। ये भी रोज़ नहीं चलते, इनके
निश्चित दिन हैं और जुलाई से सितंबर तक यानी बरसात के मौसम
में तो कई बार जहाज़ चल ही नहीं पाते। अरब सागर वैसे ही
गुस्सैल सागरों में माना जाता है फिर ये जहाज़ भी
अपेक्षाकृत छोटे हैं।
इतिहास
द्वीपों का
इन द्वीपों का इतिहास
खोजना व्यर्थ है। ये सदियों पुराने भी हो सकते हैं और एकदम
नए भी। यात्रा के दौरान एक द्वीप तो हमें ऐसा भी मिला जो
हाल ही में उभरकर ऊपर आया है जिसमें अभी तक एक भी
पेड़-पौधा नहीं निकल सका, केवल कुछ पक्षी उस पर बैठे थे।
इसी तरह कुछ द्वीप तो कभी रहे हैं और फिर उन्हें सागर ने
लील लिया। इतिहास जानने की उत्सुकता
भी व्यर्थ है। लक्षद्वीप तो नया नाम है। इन द्वीपों में
कभी डच आए, कभी पोर्तगीज़, फिर अंग्रेज़, केरल के राजाओं
ने भी कभी यहाँ शासन किया और अंत में सन १९५६ में भारत
सरकार ने इस क्षेत्र को केंद्रीय शासन का हिस्सा बनाया।
जितने लोग आए अपनी भाषा के अनुसार इन द्वीपों को उसी तरह
पुकारते रहे। लकाद्वीप नाम तो सन १९५६ तक चलता रहा। उसके
बाद ही इसे लक्षद्वीप कहा गया। लक्ष अर्थ यदि सही दृष्टि
से लगा लें तो स्पष्ट हो जाएगा कि दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र
से भारत में समुद्री मार्ग से प्रवेश करने के लिए ये द्वीप
एक लक्ष्य का काम करते थे। बस, इसी से ये लक्षद्वीप कहलाने
लगे।
धर्म और
भाषा
यही बात यहाँ की जनसंख्या
पर लागू होती है और धर्म पर भी जनसंख्या सन १९५१ और १९८१
के बीच लगभग दुगनी हो गई। बितरा में पहले ४६ लोग रहते थे
अब वही १८१ हो गए हैं। इन द्वीपों में केवल मिनीक्वाय ऐसा
है जहाँ की बोली और कुछ अंशों में भाषा भी मालद्वीप के
समान 'मालया' है। बाकी सभी द्वीपों में मलयालम बोली जाती
है। धर्म के संबंध में कहा
जाता है कि अरब के एक संत अबेदुल्ला मक्का जाते हुए इन
द्वीपों में आए थे और उन्होंने सभी लोगों को इस्लाम धर्म
की दीक्षा दे दी। अब सारे लोग मुसलमान हैं और इस्लाम धर्म
को मानते हैं। इसलिए इन द्वीप समूहों में मसजिदों के
सिवाय और कुछ नहीं है। मसजिदें भी आम मुस्लिम मसजिदों से
अलग हैं। खपरैल-घरों को ही पवित्र पूजा स्थल बना दिया गया
है। कडमत द्वीप में मलिक मुल्ला नाम की कब्रगाह है, जिसे
सभी लोग पवित्र मानते हैं। कहा जाता है, वर्षों पहले
कभी उनका शव बहता हुआ यहाँ आ लगा था। उसे यहाँ दफ़ना दिया
गया।
आधुनिक सुविधाएँ
लक्षद्वीप के आबादीवाले
सभी दस द्वीपों में प्रायः सभी सुविधाएँ हैं। प्रत्येक
द्वीप में पोस्ट सभी सुविधाएँ हैं। प्रत्येक द्वीप में
पोस्ट ऑफिस है। चार द्वीपों में टेलीफोन एक्सचेंज हैं। ये
हैं- कवरत्ती, अंद्रोत, मिनिक्वाय और अमीनी। कवरत्ती को
लक्षद्वीप की राजधानी कहा जा सकता है। कवरत्ती का वायरलेस
से सीधा संबंध प्रायः सभी द्वीपों के साथ है और कोचीन में
प्रशासकीय कार्यालय के साथ भी वह जुड़ा हुआ है। सन १९८०
में कवरत्ती में सेटलाइट सब-स्टेशन बना दिया गया है। दूसरा
सेटलाइट स्टेशन सन १९८२ में मिनिक्वाय में बनाया गया।
मुख्यभूमि से असंबद्ध
फिलहाल ये द्वीप समूह
भारत की मुख्य भूमि से बहुत ज़्यादा जुड़े हुए नहीं हैं।
वहाँ न तो विमानतल है और न व्यावसायिक हैलीकॉप्टर की
सुविधा। अब इनकी कमी महसूस की जाने लगी है और अंद्रोत,
कवरत्ती और मिनीक्वाय विमानतल बनाने की योजना पर विचार हो
रहा है। इसी तरह हैलीपैड बनाने की योजनाएँ भी हैं। पूरे द्वीप-समूहों में न
कोई होटल है और न दूकानें, जहाँ बाहर के यात्री जाकर कुछ
खरीद सकें। सहकारी भंडार हैं जिनका उपयोग वहाँ के निवासी
करते हैं। डाक बंगले हैं और कुछ सरकिट हाउस भी लेकिन ये
सरकारी अधिकारियों के लिए ही है। केवल एक बैंक हैं-
सिंडीकेट बैंक। उसकी पाँच द्वीपों में शाखाएँ हैं। जहाज़ों को रास्ता दिखाने
के लिए सबसे बड़ा लाइट हाऊस मिनीक्वाय में हैं, जो लगभग
१०० वर्ष पुराना है। अंद्रोत, किल्तान, कलपेनी और कवरत्ती
में भी लाइट हाउस बनाए गए हैं। सभी द्वीपों के लिए एक
प्रशासक है। आजकल दिल्ली के ही श्री उमेश सहगल वहाँ इस पद
पर काम कर रहे हैं। एक डिप्टी कलेक्टर-कमिश्नर है एक पुलिस
प्रशासक। कुछ न्यायालय भी हैं लेकिन उनका कोई अर्थ नहीं
है।
अपराध के
अभिशाप से मुक्त
लक्षद्वीप ही ऐसी जगह है
जहाँ न चोरी होती है और न हत्याएँ। लोग घरों में ताले भी
नहीं लगाते। प्रत्येक द्वीप में एक कौंसिल (पंचायत कहा जा
सकता है) है, वही आपसी झगड़े निबटा देती है। स्वास्थ्य की
समस्याएँ ज़रूर हैं, लेकिन केवल दो अस्पताल हैं- एक
कवरत्ती में, दूसरा मिनीक्वाय में। छोटे-छोटे
स्वास्थ्य-केंद्र प्रत्येक द्वीप में हैं। शिक्षा के लिए
५१ स्कूल हैं जिनमें १२,३०६ विद्यार्थी पढ़ते हैं। इन
स्कूलों में अधिकांश प्रायमरी स्कूल हैं और बालवाड़ी हैं।
उच्च अध्ययन के लिए एक जूनीयर कॉलेज है और चार सीनियर
बेसिक स्कूल। आगे की शिक्षा के लिए उन्हें भारत की मुख्य
धऱती पर आना पड़ता है, पूरे द्वीप समूह में हमें केवल एक
व्यक्ति मिला जो ग्रज्युएट था। इसके बावजूद यहाँ की
स्त्रियाँ भी समाज में विशिष्ट स्थान रखती हैं और दसों
द्वीपों में स्त्रियों के लिए नारी केंद्र हैं। मिनीक्वाय
तो महिला-शासित द्वीप है और उसकी संपन्नता पर गर्व किया जा
सकता है।
पर्यटन
कैसे बढ़े?
प्रश्न एक उठता है, इन
द्वीपों में पर्यटन को कैसे बढ़ावा दिया जाए। एक बाधा तो
यह है कि भारत का निवासी भी बिना आज्ञा के इन द्वीपों में
प्रवेश नहीं कर सकता। उसे कोचीन के कार्यालय ने आज्ञा-पत्र
लेना होता है। विदेशियों के लिए तो और भी कठिन है। फिर
जहाज़ सेवा इतनी कमज़ोर है कि कब आप वापस आ सकेंगे, नहीं
कहा जा सकता।
यहाँ के प्रशासक इन
कमियों को दूर करने में लगे हैं और बंगारम, कडमत, कवरत्ती,
कल्पेनी और मिनीक्वाय में टूरिस्ट सेंटर बनाए जा रहे हैं।
बंगारम का समुद्री तट सुंदर लगूनों और कोरलों से भरा है और
इसे आसानी से होनोलूलू बनाया जा सकता है।
संभावित
अवकाश-तीर्थ
समूचे द्वीप में केवल
नारियल (पपीता भी होता है) के वृक्ष हैं। अंद्रोत में
गन्ना भी पैदा किया जाता है, अन्यथा नारियल और मछलियाँ ही
यहाँ की संपदा है। शार्क मछली आसानी से देखी जा सकती है।
टूना मछली व्यापारिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है। कुल
मिलाकर अरब सागर को कैद कर लिया जाए और पर्याप्त जहाज़
उपलब्ध हो सकें और भारतीय नागरिक को प्रवेश आसानी से मिल
सके तो मोतियों जड़ा यह द्वीप-समूह छुट्टियाँ बिताने के
लिए आदर्श है।
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