भारत
में खेती के तेजी से बदलते परिदृश्य पर रूबी अरुण का
आलेख-
जैविक खेती की बढ़ती लोकप्रियता
आजकल
भारतीय बाज़ार न स़िर्फ जैविक (ऑर्गेनिक) उत्पादों से अटे
पड़े हैं, बल्कि बहुतायत में भारतीय किसान जैविक उत्पादों
की प्राचीन भारतीय परंपरा की ओर लौट रहे हैं। भारत में
जैविक उत्पादों के तेज़ी से विस्तार का श्रेय देश के
प्रसिद्ध उद्योगपति कमल मोरारका द्वारा संचालित मोरारका
फाउंडेशन को जाता है जिसके अथक और निरंतर प्रयास द्वारा
जैविक खेती एक आंदोलन का रूप में बदल चुका है।
फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक मुकेश गुप्ता बताते हैं कि
पैदावार, बचत और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी किसानों के
लिए लाभदायक के कारण अधिक से अधिक किसान जैविक खेती की
ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इससे न स़िर्फ पैदावार बढ़ती है,
बल्कि उत्पादों की गुणवत्ता में भी बेतहाशा इज़ा़फा होता
है। इतना ही नहीं, जैविक खेती करने वाले किसानों की
फसलों को अन्य फसलों की तुलना में मूल्य भी ज़्यादा मिलता
है, जिससे किसान आर्थिक रूप से भी संपन्न बनता है। इस
समय मोरारका फाउंडेशन कुल पंद्रह राज्यों में जैविक खेती
करा रहा है। मुकेश गुप्ता इंटरनेशनल कंपीटेंस सेंटर फॉर
ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर (आइसीसीओए) के भी अध्यक्ष हैं।
आइसीसीओए ऑर्गेनिक उत्पादों की राष्ट्रीय और
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग करने का काम करती है।
मुकेश गुप्ता बताते हैं कि वर्ष २००८ तक भारत में ८.६५
लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर ऑर्गेनिक खेती हो रही थी, जो
भारत के कुल १४.२ करोड़ हेक्टेयर कृषि क्षेत्र का केवल
०.६१ प्रतिशत है। लेकिन, यह भारतीयों के अपने स्वास्थ्य
के प्रति जागरूक होने का ही नतीजा है कि यह आँकड़ा २०१२
तक २० लाख हेक्टेयर तक पहूँच जाने की आशा की जा रही है।
मुकेश गुप्ता बताते हैं कि भारत में ऑर्गेनिक उत्पादों
का व्यापार हर वर्ष दोगुना होता जा रहा है। इस गति से यह
आशा की जा सकती है कि वर्ष २०१२ तक भारत से जैविक
खाद्यान्नों का निर्यात ४५०० करोड़ रुपये तक पहुँच जाएगा।
भारत वैश्विक स्तर पर जैविक उत्पादों का निर्यातक बन
सके, इसके लिए अत्यंत आवश्यक है कि लोगों को जागरूक किया
जाए। उन्हें समझाया जाए कि जैविक उत्पाद वस्तुतः हैं
क्या। प्राकृतिक रूप से बिना किसी रासायनिक खाद, कीटनाशक
और उर्वरक के प्रयोग द्वारा उपजाए गए खाद्यान्न
स्वास्थ्य के लिए कितने लाभकारी हैं।
फिलहाल देश खाद्यान्न की कमी से भी जूझ रहा है। खाद्य
पदार्थों के मूल्य तेज़ी से बढ़ रहे हैं और, ऐसी कठिन
परिस्थितियों में भी देश में हर साल क़रीब ६० हज़ार करोड़
रुपये के खाद्यान्न की बर्बादी हो रही है। यह अत्यंत
दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन जैविक खेती द्वारा इस बर्बादी
को नियंत्रित किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि जैविक
उत्पाद लंबे समय तक ख़राब नहीं होते। उनके संरक्षण के लिए
विशेष उपायों की आवश्यकता नहीं पड़ती। जैविक खेती के
माध्यम से सूखे जैसी स्थितियों से भी निपटा जा सकता है,
क्योंकि जैविक खेती में फसलों की सिंचाई के लिए पानी की
ज़्यादा ज़रूरत नहीं पड़ती। जैविक खेती से मिट्टी की
पौष्टिकता बढ़ती है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहती है।
मोरारका फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक मुकेश गुप्ता
बताते हैं कि ऐसे समय में जब खाने की तमाम वस्तुओं में
मिलावट होने से लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है,
तब जैविक उत्पादों की महत्ता अत्यंत बढ़ जाती है, क्योंकि
जैविक उत्पादों में शुद्धता सुनिश्चित है।
भारत वैश्विक स्तर पर जैविक उत्पादों का निर्यातक बन
सके, इसके लिए अत्यंत आवश्यक है कि लोगों को जागरूक किया
जाए। उन्हें समझाया जाए कि जैविक उत्पाद वस्तुतः हैं
क्या। प्राकृतिक तरीक़े से बग़ैर किसी रासायनिक खाद,
कीटनाशक और उर्वरक के इस्तेमाल के पैदा किए गए खाद्यान्न
सेहत के लिए कितने लाभकारी हैं। इसके अतिरक्त जैविक
उत्पाद सेहत के साथ-साथ पर्यावरण के भी दोस्त हैं।
देश के शीर्ष उद्योगपति एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कमल
मोरारका के मोरारका फाउंडेशन ने पिछले १५ वर्षों में इस
दिशा में क्रांतिकारी काम किया है। जैविक खेती के विकास
और जैविक मिट्टी की उपयोगिता के महत्त्व को समझते हुए
मोरारका फाउंडेशन ने राजस्थान के अपने पैतृक स्थान
शेखावाटी क्षेत्र सहित देश के कई हिस्सों में काम करना
शुरू किया। गोष्ठियाँ कीं, सेमिनार किए। घर-घर जाकर
किसानों को जैविक खेती के फायदे के बारे में बताया और
समझाया। क्षेत्र की बंजर मिट्टी, पानी, बाज़ार आदि पर शोध
करके फाउंडेशन ने उसका सीधा लाभ क्षेत्र के किसानों को
पहुँचाया। प्रशिक्षण शिविरों के मा़र्फत किसानों को
जैविक खेती की पद्धति का बारीक प्रशिक्षण दिया। जिसका
सुपरिणाम यह हुआ कि आज शेखावाटी का पूरा क्षेत्र
रेगिस्तान से उपजाऊ मरुद्यान में परिवर्तित हो गया है।
दूर-दूर तक हरी-हरी फसलें लहलहाती नज़र आती हैं।
खाद्यान्नों में दलहन और तिलहन ही नहीं, बल्कि हरी
सब्ज़ियाँ भी बहुतायत में पैदा हो रही हैं। फाउंडेशन की
कोशिशों के परिणाम इतने उत्साहवर्द्धक हैं कि साल के
बारहों महीने शेखावाटी क्षेत्र में पैदा हुई हरी
सब्ज़ियाँ मसलन टमाटर, बैगन, हरी मिर्च, प्याज़, लहसुन,
गाज़र, करेला, मटर इत्यादि मुंबई और दिल्ली के बाज़ारों
में सीधे पहुँच रही हैं। यह काम मोरारका फाउंडेशन के
निर्देशन में ही संभव हो पाता है। कृषि फार्म के एक
किसान नेक राम बताते हैं कि जैविक खेती से सबसे बड़ा लाभ
यह हुआ है कि खेती की लागत ८० फीसदी कम हुई है और कृषि
उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। किसानों की
आमदनी ३० से ४० प्रतिशत बढ़ गई है।
मुकेश गुप्ता बताते हैं कि मोरारका फाउंडेशन का उद्देश्य
ही है कि किसानों को कृषि से व्यवसाय जैसी आमदनी हो।
इसके लिए मोरारका फाउंडेशन किसानों को विभिन्न उपयोगी
सलाहें देता है। फसल का चुनाव, खेती करने की उन्नत
विधियाँ, कृषि संबंधी आधुनिक सूचनाएँ तथा फसल कटने के
बाद वे कैसे बेहतर मूल्य पा सकते हैं इसकी जानकारी
किसानों तक पहुँचाई जाती है। साथ ही वह फसल का बीमा, खाद
और बीज की उपलब्धता आदि के बारे में शिविरों के माध्यम
से बराबर प्रशिक्षण देता है। इसके लिए मोरारका फाउंडेशन
ने नवलगढ़ कस्बे में बस स्टैंड, तहसील, पंचायत समिति और
कोर्ट के पास एक "एग्री बिज़नेस सेंटर" नामक कृषि व्यापार
केंद्र भी स्थापित किया है।
मोरारका फाउंडेशन ने मुंबई में जैविक उत्पादों का देश
में पहला और सबसे बड़ा रिटेल स्टोर "डाउन टू अर्थ" नाम से
शुरू किया है। वैसे भी मोरारका के उत्पाद अपनी श्रेष्ठ
गुणवत्ता और शुद्धता के लिए देश और विदेशों में जाने
जाते हैं। इस जैविक स्टोर में दो सौ से ज़्यादा जैविक
उत्पाद हमेशा उपलब्ध रहते हैं। मुकेश गुप्ता "मोरारका
ऑर्गेनिक" के भी कार्यकारी निदेशक हैं। उनका कहना है कि
इस समय देश में जैविक उत्पादों के लगभग ३० मिलियन
उपभोक्ता हैं, लेकिन उन्हें इन उत्पादों को ख़रीदने में
अत्यंतपरेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए "मोरारका
ऑर्गेनिक्स" की योजना है कि वह देश भर में ऐसे रिटेल
स्टोर शुरू करे, ताकि उपभोक्ताओं के साथ-साथ किसानों को
भी फायदा हो सके। इस पहल से किसान बिचौलियों के चंगुल
में आए बिना अपनी फसल का उचित मूल्य पाते हैं।
फिलहाल फाउंडेशन क़रीब एक लाख एकड़ भूमि में जैविक खेती का
विकास कर चुका है। वर्ष १९९५ में राजस्थान सरकार ने
राज्य के दस हज़ार किसानों के साथ जैविक खेती की शुरुआत
करने का प्रस्ताव मोरारका फाउंडेशन के साथ किया था। आज
दो लाख से ज़्यादा किसान इस फाउंडेशन के साथ जुड़कर जैविक
खेती कर रहे हैं। ये किसान जैविक खादों का प्रयोग कर
श्रेष्ठ गुणवत्ता के फल, सब्ज़ी, दलहन, तिलहन और मसालों
का उत्पादन कर रहे हैं।
मुकेश गुप्ता बताते हैं कि केंचुओं का इस्तेमाल कर कचरे
को वर्मीकंपोस्ट में बदल कर जैविक खाद बनाई जाती है। इस
विधि को वर्मीकल्चर नाम दिया गया है। वर्मीकंपोस्ट की यह
विधि शेखावाटी से प्रचलित होकर समूचे राजस्थान, कर्नाटक,
तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार,
पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश तक पहुँच
गई है। मुकेश गुप्ता कहते हैं कि यह मोरारका फाउंडेशन और
"मोरारका ऑर्गेनिक" की लगन का ही नतीजा है कि विकसित
केंचुओं का निर्यात हम दुनिया के कई विकसित और विकासशील
देशों को कर पा रहे हैं। हमारी जो कोशिशें हैं, उनमें
आने वाले दिनों में भारत विश्व स्तर पर जैविक खेती में
निश्चित तौर पर नए आयाम स्थापित करेगा।
शेखावाटी उत्सव- जैविक भोज
पिछले पंद्रह वर्षों से होने वाले शेखावाटी उत्सव की ख़ास
पहचान बन चुका है मोरारका फाउंडेशन द्वारा आयोजित जैविक
उत्पादों से तैयार किए गए स्वादिष्ट व्यंजनों का जैविक
भोज। मेले के दूसरे दिन दोपहर में होने वाले इस भोज का
आनंद लेने दूरदराज़ से गणमान्य अतिथि यहाँ पहुँचते हैं,
जिनमें विदेशी अतिथियों और मीडियाकर्मियों की ख़ासी
उपस्थिति रहती है। इस भोज में शेखावाटी में ही उत्पादित
जैविक खाद्यान्नों के पकवानों को परोसा जाता है। बाजरे
और मक्के की रोटी, गुड़, मक्खन, चावल, गेहूँ की रोटी,
कढ़ी, खीर, लहसुन-मिर्च की चटनी, कैर की सब्ज़ी, आलू, मटर,
गोभी, टमाटर की लाजवाब सब्ज़ी, सांगरी, दही, छाछ, राबड़ी
आदि। ये सभी व्यंजन अपनी मनमोहक खुशबू और स्वाद से
अतिथियों को अपना प्रशंसक बना लेते हैं।
इस जैविक भोज के माध्यम से फाउंडेशन, शेखावाटी उत्सव में
आगंतुकों को जैविक उत्पादों के महत्त्व और उपयोगिता के
बारे में जागरूक करता है। इस भोज में परोसे गए खानों की
एक और अत्यंत विशेष बात यह होती है कि जैविक होने का
कारण से ये खाद्यान्न पकने के बाद भी अपनी असली रंगत
नहीं छोड़ते, जिसके कारण से ये सुपाच्य और स्वादिष्ट तो
हो ही जाते हैं, देखने में भी बड़े आकर्षक लगते हैं।
शेखावाटी के रहने वाले नवल किशोर अग्रवाल कहते हैं कि
यहां के लोगों को हर साल इस भोज का बड़ी बेसब्री से
इंतज़ार रहता है। किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए इस भोज
में उन्हीं के द्वारा तैयार किए गए व्यंजन परोसे जाते
हैं। |