सामयिकी सोमालिया से

सोमालिया के समुद्री डाकुओं की पड़ताल के बाद क्रिस मिल्टर खोल रहे हैं-


भयानक समुद्री डाकुओं का ज़हरीला रहस्य!


अफ्रीका के ऊपरी छोर पर बसा सोमालिया देश पिछले दो वर्षों से लगातार खबरों में है। सन २००८ और २००९ में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुख्याति अर्जित कर ली है। इस दौरान उन्होंने हथियार ढोने वाले जहाज, तेल टेंकर और क्रूज जैसे जहाजों का अपहरण किया है और इनकी रिहाई के बदले उनके मालिकों से भारी मात्रा में धन वसूल किया है।

अनेक राष्ट्रीय सरकारों और गैर सरकारी संगठनों ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानूनों की दुहाई देते हुए इन डाकुओं पर कठोर कार्यवाही की माँग की है। परंतु बहुत कम ने इन जलदस्युओं के इस दावे पर ध्यान दिया है कि सोमालिया में तरह-तरह का जहरीला कचरा फेंकने का जो गैरकानूनी काम चल रहा है, वह इन अपराधों से ज्यादा बड़ा व हानिकारक है। ये डाकू इसी कारण इस धंधों में उतरे हैं! कई संगठन पिछले १० वर्षों से भी अधिक समय से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से यह माँग करते रहे हैं कि इस जहरीले कचरे को यहाँ फेंकने पर रोक लगाई जाए। लेकिन दुर्भाग्यवश यह संकट और गहराता ही जा रहा है।

सन १९९७ में इटली की ‘फेमिक्लि क्रिसटिआना’ नाम की एक पत्रिका में ग्रीनपीस की एक महत्त्वपूर्ण जाँच रिपोर्ट छपी थी। यह यहाँ भयानक जहरीला कचरा फेंकने के मामले की एक जाँच पर आधारित थी। इसके अनुसार यह घिनौना काम १९८० के दशक के अंत में प्रारंभ हुआ था। स्विटजरलैंड और इटली की कुछ बदनाम कंपनियों ने वहाँ के खतरनाक कचरे को ले जाकर सोमालिया में फेंकने का ठेका ले लिया था। बाद की जाँच से यह भी पता चला कि इस काम में जिन जहाजों को लगाया गया, वे सोमालिया सरकार के ही थे!

सन १९९२ में सोमालिया गृहयुद्ध में उलझ गया। इन कंपनियों को सोमालिया के लड़ाकों से समझौता करना पड़ा। इन गुटों ने कचरा फेंकने में कोई रुकावट नहीं डाली, पर उस काम को जारी रखने के लिए कीमत माँगी। डंपिंग को जारी रखने के बदले में बंदूकों और गोलाबारूद की माँग की। इसके बाद अनेक जहाज कचरा और हथियार लेकर आए और वापस लौटते समय मछली पकड़ने वाले जहाज में परिवर्तित हो गए। सोमालिया के जल में पाई जाने वाली टूना मछली भरकर आगे बिक्री को लेकर चलते बने।

वर्ष १९९४ में इटली की एक पत्रकार इलारिया अल्पी की हत्या को लेकर हुई जाँच के दौरान एक लड़ाकू बागी नेता बोगोर मूत्ता ने कहा था कि यह तय है कि वे जहाजों में सैन्य सामग्री लेकर आ रहे थे। उसे गृहयुद्ध में फंसे हुए अनेक समूहों में बांटा जाना था। आशंका जताई जा रही है कि अल्पी के पास जहरीले कचरे के बदले बंदूक-व्यापार के पुख्ता सबूत थे। इसलिए उनकी हत्या कर दी गई।

ग्रीनपीस की इस रिपोर्ट पर थोड़ी बहुत सनसनी फैली। पर ज्यादा कुछ न होता देख फिर इसके तुरंत बाद यूरोपीय ग्रीनपीस पार्टी ने यूरोपीय संसद में एक प्रश्न पूछा। इसमें सोमालिया में जर्मनी, फ्रांस और इटली के परमाणु बिजलीघरों और अस्पतालों से जहरीला कचरा फेंकने के बारे में जानकारी माँगी गई थी। इसके परिणामस्वरूप इटली में व्यापक जाँच पड़ताल प्रारंभ हुई। एक समय था जब सोमालिया इटली के कब्जे में था। इसलिए इटली आज भी अपने आंगन का
कचरा सोमालिया के घर में फेंकता है। जाँच से पता चलता है कि सोमालिया को करीब ३.५ करोड़ टन कचरा का 'निर्यात' किया गया और बदले में उसे मात्र ६.६ अरब अमेरिकी डालर का भुगतान किया गया था। इस तरह इन सभ्य और साफ सुथरे माने गए देशों ने सोमालिया को अपना कचराघर बना लिया। इतने वजन का कचरा और कहीं नहीं फेंका गया है। इसे भी ये देश 'निर्यात' शब्द से ढंक देते हैं।

निर्यात भी ऐसा कि आयातित कचरे को सोमालिया की आज की पीढ़ी तो छोड़िए, आने वाली न जाने कितनी पीढ़ियाँ हाथ भी नहीं लगा पाएंगी। आज सोमालिया दुनिया में 'डंपिंग' का सर्वाधिक बड़ा केन्द्र बन गया है। सन २००४ में आई बॉक्सिंग डे सुनामी के परिणामस्वरूप सोमालिया के समुद्री किनारों पर रहने वाले कई ग्रामीण एक अज्ञात बीमारी के कारण मर गए थे। और समुद्र तट का पूरा पर्यावरण बुरी तरह से तबाह हो गया था।

सन २००५ में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने सोमालिया में गहरी जाँच की। वहाँ के राजनेताओं की घेराबंदी तगड़ी थी। इसलिए पूरा सहयोग नहीं मिल सका था। फिर भी बहुत विश्वसनीय सबूत न पाए जाने के बावजूद इसके निष्कर्ष में कहा गया था कि सोमालिया के समुद्र में, किनारों पर, बंदरगाहों के पिछले हिस्सों में जहरीले और खतरनाक कचरे को फेंकने का
काम बदस्तूर जारी है। इसके एक साल बाद यहाँ के एक गैरसरकारी संगठन 'डारयील बुल्शो गुड' ने एक और जाँच की।

उसे संयुक्त राष्ट्र संघ की जाँच से बेहतर सहयोग मिला। जाँच में आठ समुद्री इलाकों में ऐसे १५ कचरा कन्टेनरों को चिन्हित किया जिनमें निश्चित तौर पर परमाणु और रासायनिक कचरा मौजूद है। ठीक इसी समय संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व बैंक ने सोमालिया राष्ट्र को पुनर्स्थापित करने के लिए एक साझा आकलन किया। इस योजना में वहाँ का पर्यावरण सुधारना भी शामिल किया गया है। इसमें यहाँ 'पाए गए' जहरीले कचरे को हटना भी जोड़ा गया है। इस काम के लिए ४.२१ करोड़ अमेरिकी डालर की व्यवस्था करने की अनुशंसा की गई थी। इसमें लोगों को हुई हानि की कोई बात नहीं की गई थी। सफाई की बात करने वाली यह रिपोर्ट यह नहीं बताती कि सोमालिया में जहरीला कचरा पटकना अब भी जारी है।

अमेरिका के मिनिसोटा विश्वविद्यालय की एक शोधकर्ता और अब पर्यावरण न्याय अधिवक्ता जैनब हस ने सोमालिया के निवासियों द्वारा भुगती जा रही लंबी अवधि वाली और गंभीर बीमारियों की पूरी श्रृंखला का पता लगाया है। इसमें कई जन्मजात विकृतियाँ भी सामने आई हैं। इसमें हाथ-पैरों का विकसित न होना और कैंसर की व्यापकता भी शामिल है। यहाँ के एक चिकित्सक का कहना है कि उसने सुनामी के बाद के एक साल में जितने कैंसर मरीजों का इलाज किया है,
उतना अपनी पूरी जिंदगी में नहीं किया था। जैनब का कहना है कि यूरोप की ये कंपनियाँ अवैधानिक तरीके से यहाँ खतरनाक व परमाणु कचरा फेंक रही हैं। अंतराष्ट्रीय समुदाय को यहाँ की सफाई के लिए और जो इसके लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें न्यायालय में घसीटने के लिए तुरंत कोई कठोर कार्यवाही करना चाहिए।

‘इको टेरा’ नामक एक गैरसरकारी संगठन सोमालिया से बहुत घनिष्ठ संबंध रखता है। पर वह कंपनियों के मूल के बारे में कुछ भी कहने से हिचक रहा है। इसकी वजह शायद पत्रकार इलारिया अल्पी की हत्या ही है। हाँ वह स्थिति को तो घातक बता ही रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के क्षेत्रीय प्रतिनिधि अहमदो ऑड अबदुल्ला भी इस मामले में इतने ही संवेदनशील हैं। उन्होंने भी यह स्वीकार किया है कि सोमालिया के समुद्री तटों पर जहर फैलाना, फेंकना जारी है। उन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से उन सामाजिक संस्थाओं के नाम बताने से इंकार कर दिया है, जिनकी जाँच से उन्हें ये तथ्य मिले हैं। डंपिंग के जिम्मेदारों को न्याय के सामने लाना टेढ़ी खीर है। यूरोपीय यूनियन के नियम २५९/९३ और ९२/३/यूराटॉम के अंतर्गत वे मूल देश जहाँ से चिकित्सा और परमाणु का कचरा निर्यात हुआ है, न केवल इसके लिए पूर्णत: उत्तरदायी हैं बल्कि उस कचरे को वापस उठाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर है।

सोमालिया में अभी भी बहुत से कंटेनरों की जाँच होना बाकी है। कागजी खानापूरी में हो रही देरी से अनेक दस्तावेज भी नष्ट हो गए हैं। इससे कानूनी कार्यवाही में भी दिक्कतें आ सकती हैं। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ के सूत्रों का कहना है कि सोमालिया में खतरनाक पदार्थों को ढूंढ़ना भूसें के ढेर में सुई ढूंढ़ने जैसा है। ऐसा इसलिए नहीं है कि वे यह नहीं जानते कि यह कचरा कहाँ है। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि काम शुरू कहाँ से किया जाए? यह तो वहाँ के समुद्र में चारों तरफ पड़ा है।

यूरोप के इन देशों के लोगों को सोचना चाहिए कि उनके यहाँ ऐसी सफाई, ऐसी बिजली, ऐसा स्वास्थ्य किस काम का, जिसे टिकाए रखने के लिए सोमालिया में भयानक गंदगी, भयानक बीमारी और भयानक अंधेरा फैल चला है।
 

अफ्रीका के ऊपरी छोर पर बसा सोमालिया देश पिछले दो वर्षों से लगातार ख़बरों में है। सन २००८ और २००९ में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुख्याति अर्जित कर ली है। इस दौरान उन्होंने हथियार ढोने वाले जहाज़, तेल टेंकर और क्रूज जैसे जहाज़ों का अपहरण किया है और इनकी रिहाई के बदले उनके मालिकों से भारी मात्रा में धन वसूल किया है।

अनेक राष्ट्रीय सरकारों और गैर सरकारी संगठनों ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानूनों की दुहाई देते हुए इन डाकुओं पर कठोर कार्यवाही की माँग की है। परंतु बहुत कम ने इन जलदस्युओं के इस दावे पर ध्यान दिया है कि सोमालिया में तरह-तरह का ज़हरीला कचरा फेंकने का जो गैरकानूनी काम चल रहा है, वह इन अपराधों से ज़्यादा बड़ा व हानिकारक है। ये डाकू इसी कारण इस धंधों में उतरे हैं! कई संगठन पिछले १० वर्षों से भी अधिक समय से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से यह माँग करते रहे हैं कि इस ज़हरीले कचरे को यहाँ फेंकने पर रोक लगाई जाए। लेकिन दुर्भाग्यवश यह संकट और गहराता ही जा रहा है।

सन १९९७ में इटली की 'फेमिक्लि क्रिसटिआना' नाम की एक पत्रिका में ग्रीनपीस की एक महत्त्वपूर्ण जाँच रिपोर्ट छपी थी। यह यहाँ भयानक ज़हरीला कचरा फेंकने के मामले की एक जाँच पर आधारित थी। इसके अनुसार यह घिनौना काम १९८० के दशक के अंत में प्रारंभ हुआ था। स्विटजरलैंड और इटली की कुछ बदनाम कंपनियों ने वहाँ के ख़तरनाक कचरे को ले जाकर सोमालिया में फेंकने का ठेका ले लिया था। बाद की जाँच से यह भी पता चला कि इस काम में जिन जहाज़ों को लगाया गया, वे सोमालिया सरकार के ही थे!

सन १९९२ में सोमालिया गृहयुद्ध में उलझ गया। इन कंपनियों को सोमालिया के लड़ाकों से समझौता करना पड़ा। इन गुटों ने कचरा फेंकने में कोई रुकावट नहीं डाली, पर उस काम को जारी रखने के लिए कीमत माँगी। डंपिंग को जारी रखने के बदले में बंदूकों और गोलाबारूद की माँग की। इसके बाद अनेक जहाज़ कचरा और हथियार लेकर आए और वापस लौटते समय मछली पकड़ने वाले जहाज़ में परिवर्तित हो गए। सोमालिया के जल में पाई जाने वाली टूना मछली भरकर आगे बिक्री को लेकर चलते बने।

वर्ष १९९४ में इटली की एक पत्रकार इलारिया अल्पी की हत्या को लेकर हुई जाँच के दौरान एक लड़ाकू बागी नेता बोगोर मूत्ता ने कहा था कि यह तय है कि वे जहाज़ों में सैन्य सामग्री लेकर आ रहे थे। उसे गृहयुद्ध में फँसे हुए अनेक समूहों में बाँटा जाना था। आशंका जताई जा रही है कि अल्पी के पास ज़हरीले कचरे के बदले बंदूक-व्यापार के पुख्ता सबूत थे। इसलिए उनकी हत्या कर दी गई।

ग्रीनपीस की इस रिपोर्ट पर थोड़ी बहुत सनसनी फैली। पर ज़्यादा कुछ न होता देख फिर इसके तुरंत बाद यूरोपीय ग्रीनपीस पार्टी ने यूरोपीय संसद में एक प्रश्न पूछा। इसमें सोमालिया में जर्मनी, फ्रांस और इटली के परमाणु बिजलीघरों और अस्पतालों से जहरीला कचरा फेंकने के बारे में जानकारी माँगी गई थी। इसके परिणामस्वरूप इटली में व्यापक जाँच पड़ताल प्रारंभ हुई। एक समय था जब सोमालिया इटली के कब्जे में था। इसलिए इटली आज भी अपने आँगन का
कचरा सोमालिया के घर में फेंकता है। जाँच से पता चलता है कि सोमालिया को करीब ३.५ करोड़ टन कचरा का 'निर्यात' किया गया और बदले में उसे मात्र ६.६ अरब अमेरिकी डालर का भुगतान किया गया था। इस तरह इन सभ्य और साफ़ सुथरे माने गए देशों ने सोमालिया को अपना कचराघर बना लिया। इतने वजन का कचरा और कहीं नहीं फेंका गया है। इसे भी ये देश 'निर्यात' शब्द से ढँक देते हैं।

निर्यात भी ऐसा कि आयातित कचरे को सोमालिया की आज की पीढ़ी तो छोड़िए, आने वाली न जाने कितनी पीढ़ियाँ हाथ भी नहीं लगा पाएँगी। आज सोमालिया दुनिया में 'डंपिंग' का सर्वाधिक बड़ा केन्द्र बन गया है। सन २००४ में आई बॉक्सिंग डे सुनामी के परिणामस्वरूप सोमालिया के समुद्री किनारों पर रहने वाले कई ग्रामीण एक अज्ञात बीमारी के कारण मर गए थे। और समुद्र तट का पूरा पर्यावरण बुरी तरह से तबाह हो गया था।

सन २००५ में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने सोमालिया में गहरी जाँच की। वहाँ के राजनेताओं की घेराबंदी तगड़ी थी। इसलिए पूरा सहयोग नहीं मिल सका था। फिर भी बहुत विश्वसनीय सबूत न पाए जाने के बावजूद इसके निष्कर्ष में कहा गया था कि सोमालिया के समुद्र में, किनारों पर, बंदरगाहों के पिछले हिस्सों में ज़हरीले और ख़तरनाक कचरे को फेंकने का
काम बदस्तूर जारी है। इसके एक साल बाद यहाँ के एक गैरसरकारी संगठन 'डारयील बुल्शो गुड' ने एक और जाँच की।

उसे संयुक्त राष्ट्र संघ की जाँच से बेहतर सहयोग मिला। जाँच में आठ समुद्री इलाकों में ऐसे १५ कचरा कन्टेनरों को चिन्हित किया जिनमें निश्चित तौर पर परमाणु और रासायनिक कचरा मौजूद है। ठीक इसी समय संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व बैंक ने सोमालिया राष्ट्र को पुनर्स्थापित करने के लिए एक साझा आकलन किया। इस योजना में वहाँ का पर्यावरण सुधारना भी शामिल किया गया है। इसमें यहाँ 'पाए गए' ज़हरीले कचरे को हटना भी जोड़ा गया है। इस काम के लिए ४.२१ करोड़ अमेरिकी डालर की व्यवस्था करने की अनुशंसा की गई थी। इसमें लोगों को हुई हानि की कोई बात नहीं की गई थी। सफाई की बात करने वाली यह रिपोर्ट यह नहीं बताती कि सोमालिया में ज़हरीला कचरा पटकना अब भी जारी है।

अमेरिका के मिनिसोटा विश्वविद्यालय की एक शोधकर्ता और अब पर्यावरण न्याय अधिवक्ता जैनब हस ने सोमालिया के निवासियों द्वारा भुगती जा रही लंबी अवधि वाली और गंभीर बीमारियों की पूरी शृंखला का पता लगाया है। इसमें कई जन्मजात विकृतियाँ भी सामने आई हैं। इसमें हाथ-पैरों का विकसित न होना और कैंसर की व्यापकता भी शामिल है। यहाँ के एक चिकित्सक का कहना है कि उसने सुनामी के बाद के एक साल में जितने कैंसर मरीज़ों का इलाज किया है,
उतना अपनी पूरी ज़िंदगी में नहीं किया था। जैनब का कहना है कि यूरोप की ये कंपनियाँ अवैधानिक तरीके से यहाँ खतरनाक व परमाणु कचरा फेंक रही हैं। अंतराष्ट्रीय समुदाय को यहाँ की सफ़ाई के लिए और जो इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, उन्हें न्यायालय में घसीटने के लिए तुरंत कोई कठोर कार्यवाही करना चाहिए।

'इको टेरा' नामक एक गैरसरकारी संगठन सोमालिया से बहुत घनिष्ठ संबंध रखता है। पर वह कंपनियों के मूल के बारे में कुछ भी कहने से हिचक रहा है। इसकी वजह शायद पत्रकार इलारिया अल्पी की हत्या ही है। हाँ वह स्थिति को तो घातक बता ही रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के क्षेत्रीय प्रतिनिधि अहमदो ऑड अबदुल्ला भी इस मामले में इतने ही संवेदनशील हैं। उन्होंने भी यह स्वीकार किया है कि सोमालिया के समुद्री तटों पर ज़हर फैलाना, फेंकना जारी है। उन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से उन सामाजिक संस्थाओं के नाम बताने से इंकार कर दिया है, जिनकी जाँच से उन्हें ये तथ्य मिले हैं। डंपिंग के ज़िम्मेदारों को न्याय के सामने लाना टेढ़ी खीर है। यूरोपीय यूनियन के नियम २५९/९३ और ९२/३/यूराटॉम के अंतर्गत वे मूल देश जहाँ से चिकित्सा और परमाणु का कचरा निर्यात हुआ है, न केवल इसके लिए पूर्णत: उत्तरदायी हैं बल्कि उस कचरे को वापस उठाने की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर है।

सोमालिया में अभी भी बहुत से कंटेनरों की जाँच होना बाकी है। कागज़ी खानापूरी में हो रही देरी से अनेक दस्तावेज़ भी नष्ट हो गए हैं। इससे कानूनी कार्यवाही में भी दिक्कतें आ सकती हैं। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ के सूत्रों का कहना है कि सोमालिया में ख़तरनाक पदार्थों को ढूँढ़ना भूसे के ढेर में सुई ढूँढ़ने जैसा है। ऐसा इसलिए नहीं है कि वे यह नहीं जानते कि यह कचरा कहाँ है। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि काम शुरू कहाँ से किया जाए? यह तो वहाँ के समुद्र में चारों तरफ़ पड़ा है।

यूरोप के इन देशों के लोगों को सोचना चाहिए कि उनके यहाँ ऐसी सफाई, ऐसी बिजली, ऐसा स्वास्थ्य किस काम का, जिसे टिकाए रखने के लिए सोमालिया में भयानक गंदगी, भयानक बीमारी और भयानक अंधेरा फैल चला है।

(इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) से साभार)

३० नवंबर २००९