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ग्रीष्म का आतप
बहकती तितलियों के दल

दोपहर की गुनगुनाहट
बुन रही है छाँव
रहट की आहट जगाती
नींद डूबा गाँव
धूप खेले दाँव

रंग भरते वादियों में मधुर मंगल
उड़ रहे हैं फिर-
बहकती तितलियों के दल
 एक निखरी भोर पर
लिक्खा किसी का नाम
एक पँखुरी फूल पर
बिखरा, हुआ अनुमान
प्रेम का पैगाम

जिंदगी के मीत का कोई गीत निश्छल
गा रहे हैं फिर —
बहकती तितलियों के दल

याद के सुनसान खेतों में
बिखरते छंद
शहर के तूफ़ान में फिर
ढूँढते मकरंद
पल कोई स्वच्छंद

खुल सकें जिसमें हृदय के बोल फिल बेकल
कह रहे हैं फिर—
बहकती तितलियों के दल

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