हम-थे-तुम-थे-साथ-नदी थी
पर्वत-पर-आकाश टिका-था
झरनों की गति मन हरती थी
रुकी-रुकी
-कोहरे की बाँहें
हरियाली-की-शीतल-छाँहें
रिमझिम से भीगे मौसम में
सन्नाटे
-की धुन
बजती थी
मणि-मुक्ता-से साँझ-सवेरे
धुली-धुली
दोपहर को घेरे
हाथों-को-बादल-छूते-थे
बूँदों-में-बारिश-झरती-थी
गहरी-
घाटी
-ऊँचे
-धाम
मोड़,
--मन्नतें,
-शालिग्राम
झर-झरकर झरते संगम पर
खेतों-से-लिपटी
बस्ती थी
गरम हवा
का
नाम
नहीं
था
कहीं उमस का ठाम नहीं था
सँवरीखड़ी धान की
फसलें
अंबर
तक
सीढ़ीबुनती
थी
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