गर्मियों में पहाड़ पर

हम-थे-तुम-थे-साथ-नदी थी
पर्वत
-पर-आकाश टिका-था
झरनों की गति मन हरती थी

रुकी-रुकी -कोहरे की बाँहें
हरियाली-की-शीतल-छाँहें
रिमझिम से भीगे मौसम में
सन्नाटे
-की धुन बजती थी

मणि-मुक्ता-से साँझ-सवेरे
धुली
-धुली दोपहर को घेरे
हाथों
-को-बादल-छूते-थे
बूँदों
-में
-बारिश-झरती-थी

गहरी
- घाटी -ऊँचे -धाम
मोड़,
--मन्नतें, -शालिग्राम
झर
-झरकर झरते संगम पर
खेतों
-से-लिपटी बस्ती थी


गरम हवा का नाम नहीं था
कहीं उमस का ठाम नहीं था
सँवरीखड़ी धान की फसलें
अंबर तक सीढ़ीबुनती थी

- पूर्णिमा वर्मन

 

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