बड़े
दिवस की शुभ संध्या पर
बर्फ पड़ रही धीरे धीरे
बाहर प्रकृति की नीरवता है
घर के भीतर बिछी खुशी रे
मृदु फूलों की मधुर गंध है
शमा जल रही मंद मंद है
गीतों से मीठे सपने है
सपनों के रंग में अपने हैं
हर मन में उठती
दुआएं हैं
मित्रों की शुभकामनाएं हैं
भूले बिसरे आन मिले हैं
सबके चेहरे आज खिले हैं
ऐसे
में जो पास नहीं हैं
उनकी खलती घनी कमी रे
सब खुशियों के
साथ बसी है
आँखों में बस यही नमी रे
पूर्णिमा वर्मन
|